सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियम (GF&AR) अध्याय-2
वित्तीय प्रबन्ध एवं नियंत्रण की सामान्य प्रणाली
(नियम 5 से 26 तक)


नियम 5ः- सरकार की कोई भी राशि प्राप्त होते ही उसे तुरन्त प्रभाव से सरकारी खाते में जमा किया जावेगा।

नियम 6ः- यदि धनराशि सरकारी बकाया के रूप में प्राप्त हो तो उसे कोषागार नियमों के अनुसार संचित निधि में एवं सरकार की अभिरक्षा के रूप में प्राप्त हो तो लोक लेखा निधि में जमा किया जायेगा।

नियम 7ः- जिन राशियों को सरकारी खातों में नियम 5 व 6 के तहत जमा करवाया जा रहा है, सम्बन्धित अधिकारी उन राशियों का निर्धारण संग्रहण एवं लेखांकन करके अपने उच्चतर अधिकारी को जमा करवायेगा।

नियम 8ः- कोषागार से धनराशि निकालने के सामान्य सिद्धान्तः-
कोषागार से धन सदैव कोषागार नियमों के अधीन ही निकाला जायेगा।
सरकारी खाते से राशि को केवल उसी दशा में निकाला जाएगा, जब भुगतान किया जाना आवश्यक हो।
बजट अनुदान को व्ययगत (लैप्स) होने से बचाने के लिए राशि को सरकारी खाते से निकाल कर बैंक खाते, लोक लेखा खाता, निजी जमा खाते में रखा जाना निषेध है।

नियम 9ः- लोक निधि में से व्यय करने की शर्तेंः-
लोक निधि से उन्हीं राशियों को निकाला जा सकता है, जिनका बजट में स्पष्ट प्रावधान होता है।
लोक निधि से राशियों का आहरण सदैव सार्वजनिक हित में होना चाहिए।

नियम 10ः- वित्तीय औचित्य के स्तरः-
कोई भी कर्मचारी सरकारी राशियों को खर्च करें वह सदैव एक सामान्य बुद्धि के व्यक्ति के स्तर के हिसाब से निर्धारण व व्यय करें। खर्च सदैव मांग से कम होना चाहिए।

नियम 11ः- व्यय का नियंत्रणः- किसी भी विभाग में सदैव नियंत्रण उस विभाग के विभागाध्यक्ष द्वारा निर्धारित होता है। जीए-19 में बकाया व्ययों का विवरण दर्शाया जाता है।

नियम 12ः- आन्तरिक जांच- अनियमितता, छीजत आदि के विरुद्ध आन्तरिक जांच सदैव नियम 12 के तहत होती है।
आन्तरिक जांच दल सदैव विभाग के विभागाध्यक्ष द्वारा बनाये जाते है। निदेशक, अंकेक्षण अधिकारी (20.01.2006) को राजस्थान सरकार द्वारा इस पद का सर्जन किया गया है तथा यह अधिकारी आकस्मिक रूप से विभागों में होने वाली आन्तरिक जांच की जांच कर सकता है।

नियम 13ः- भुगतान में देरी से बचे- जो धनराशियां निर्विवाद रूप से देय हो, उनका भुगतान तुरन्त किया जाना चाहिए।

नियम 14ः- प्रत्येक सरकारी कर्मचारी, जिसको सरकारी राशि व सामान का लेखा तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है, वह उसे सही व पूर्ण रूप से संधारित रखने तथा निर्धारित समय पर उच्चाधिकारियों को प्रेषित करने हेतु व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होगा।

नियम 15ः- हस्ताक्षर व प्रतिहस्ताक्षर करने वाले अधिकारियों की जिम्मेदारी।

नियम 16- विभागीय अधिकारियों का उत्तरदायित्वः- प्रत्येक नियंत्रण अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि कार्यालय में लिखे गये लेखे सही व समय पर पूर्ण कर लिये गये है तथा रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को समय पर भिजवाई जावें।

नियम 17ः- आडिट (Audit) द्वारा सूचना मांगनाः-
महालेखाकार किसी भी विभाग के विभागाध्यक्ष से सूचना मांग सकता है। यदि किसी विभाग की सूचना गोपनीय हो तो विभागाध्यक्ष सम्बन्धित सूचना सीधे महालेखाकार को पे्रषित करेगा।

नियम 18ः- संविदा- भारतीय संविधान के अनु. 299 के तहत संविदायें सम्पादित की जाती है।
GF&AR के परिशिष्ट 2 के तहत संविदा निर्धारित की जाती है।

नियम 19ः- संविदा के सामान्य सिद्धान्तः-
>>सामान्य तौर पर संविदायें एक वित्तीय वर्ष के लिए आमंत्रित की जाती है।
>>संविदा की शर्तें स्पष्ट व लिखित हो।
>>जहां तक संभव हो, मानक प्रारूप का उपयोग होना चाहिए।
>>शर्तों की पहले से जांच होनी चाहिए।
>>संविदा में परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए।

>>यदि मानक प्रारूप उपलब्ध न हो तो वित्तीय परामर्श एवं विधिक परामर्श से प्रारूप तैयार करना चाहिए।
>>संविदा से पूर्व वित्त विभाग की स्वीकृति होनी चाहिए।
>>संविदायें खूली आमंत्रित की जानी चाहिए।
>>जहां पर सबसे कम मूल्य वाली संविदा को स्वीकार न किया गया हो उसका स्पष्टीकरण देना आवश्यक होगा।
>>सभी औपचारिकता लिखित में पूरी होने के बाद ही आदेश होना चाहिए।
>>ठेकेदार को उपलब्ध करवाई गई सरकारी सम्पति का भी संविदा में लेखा होना चाहिए।
>>निविदा करने वाले व्यक्ति या वर्ग की वित्तीय स्थिति पर भी विचार करना चाहिए।
>>जहां संविदा 3 वर्ष से अधिक अवधि की हो वहां सरकार किसी भी समय 03 माह के नोटिस पर संविदा वापिस लेने या रद्द करने की शक्ति रखती है। यह बात संविदा में उपलब्ध होनी चाहिए।
>>ठेकेदार द्वारा संविदा को पूर्ण करने के लिए किसी रिश्तेदार द्वारा दी गई गारण्टी स्वीकृत नहीं की जावेगी। जब तक की रिश्तेदार की स्वयं की सम्पति निर्विवाद रूप से नही हो।
>>एक लाख या अधिक के क्रय के लिए समस्त संविदाओं एवं करारों की प्रतियां महालेखाकार को भिजवाई जायेगी।

नियम 20ः- हानियों की रिपोर्टः- यदि किसी विभाग या कार्यालय या कोषागार द्वारा सार्वजनिक धनराशि का दुरूपयोग या हानि या कपटपूर्ण आहरण किया गया हो तो इसकी सूचना वरिष्ठ अधिकारी तथा महालेखाकार को तुरन्त की जानी चाहिए। चाहे हानि की पूर्ति सम्बन्धित व्यक्ति द्वारा क्यों न कर दी गई हो। कोषागार में किसी भी प्रकार की हानि की सूचना वित्त विभाग को दी जावेगी। यदि हानि 2000/- रूपयें तक की हो तो महालेखाकार को सूचना देना आवश्यक नहीं है, जब तक की विस्तृत जानकारी न होगी।

नियम 21ः- दुर्घटनायेंः- आग, बाढ़, भूकम्प या प्राकृतिक कारण से हुई अचल सम्पतियों की हानि की सूचना 15000/-रु. से अधिक नहीं होने पर विभागाध्यक्ष को भेजनी चाहिए। यदि इससे अधिक हानि हो तो उसकी रिपोर्ट महालेखाकार को भी भिजवाई जानी चाहिए ।

नियम 22ः- हानियों आदि के लिए उतरदायित्वः- प्रत्येक कर्मचारी अपने से सम्बन्धित कार्य में कपट या उपेक्षा के कारण सरकार को कोई भी हानि पहुंचाता है तो वह व्यक्तिगत जिम्मेदार होगा। इस नियम के अनुसार प्रत्येक कर्मचारी को अपने कार्य से सम्बन्धित लेखा एवं वित्तीय नियम की जानकारी होना आवश्यक है।

नियम 23ः- हानियों का अपलेखाः- वे हानियां अपलिखित की जा सकती है, जो व्यक्तिगत कारणों से न हो, बल्कि प्राकृतिक कारणों से हो।

नियम 24ः- विभागीय नियमः- ये नियम वित्त विभाग द्वारा या उसकी अनुमति से बनाया जावेगा।

नियम 25ः- लेखाधिकारियों, सहायक लेखाधिकारियों, लेखाकारों एवं कनिष्ठ लेखाकारों के कर्तव्य एवं उतरदायित्व परिशिष्ट 4 एवं 5 में दिये गये है।

नियम 26ः- शक्तियों का प्रत्यायोजनः- इसके अन्तर्गत एक अधिकारी द्वारा वित्तीय शक्तियों को अन्य अधिकारी को देना सम्मिलित है। यह नियमों के भाग तीन में निहित है।