राजस्थान सेवा नियम (RSR)

अवकाश की सामान्य शर्ते (नियम 57 से 86)

नियम 57:– अवकाश केवल कर्तव्य सम्पादन से अर्जित होते है:- (दिनांक 11.0156 ) इस नियम के तहत प्रत्येक विभाग में किसी भी कर्मचारी को अवकाश उसके कर्तव्य के अनुरूप ही देय होता है।

नियम 57(अ):– पूर्व के विभागों में की गई ऐसी सेवा जहां आरएसआर लागू नही होती तो पूर्व की सेवा का लाभ आरएसआर के तहत अवकाश के सम्बन्ध में लागू नहीं होता है।

नियम 58:- क्षतिपूर्ति /अयोग्यता पेंशन के मामले में अवकाश अवधि की गणनाः- इस नियम के तहत यदि कर्मचारी सेवाकाल में किसी अनुशासनात्मक कार्यवाही के दौरान अयोग्यता अर्जित कर लेता है तो उसकी पिछली सेवा को अवकाश अवधि के तहत माना जावेगा।

नियम 59:- अवकाश अधिकार नहीं है: – दिनांक 21.03.1967 से लागू। अधिकारी को यह अधिकार है कि वह अवकाश के नियंत्रण दावों में कमी व अस्वीकृत कर सकता है। एक कर्मचारी के लिए गये अवकाश की प्रवृति अधिकतम 03 माह तक बदल सकता है। आवेदित अवकाश की प्रवृति केवल अवकाश चाहने वाला ही बदल सकता है।

नियम 60:- अवकाश प्रारम्भ तथा अन्तः- अवकाश की शुरूआत उस दिन से होती है जिस दिन से कर्मचारी अपने पद का कार्यभार किसी अन्य को सुपुर्द कर दे । अवकाश की समाप्ति कर्मचारी के कार्यग्रहण के 01 दिन पूर्व होती है।

नियम 61:- अवकाश स्थान का पता:- इस नियम के तहत कर्मचारी अवकाश के लिए आवेदन करते समय आवेदन पत्र पर अपने अवकाश काल के दौरान रहने वाले पते का ब्यौरा देगा ।

नियम 62:- छूट देने की शक्ति:- इस नियम के तहत अवकाश के पहले व बाद सार्वजनिक अवकाश का उपयोग वहीं कर्मचारी कर सकते है, जो अपने कार्य भार का हस्तांतरण किसी अन्य कर्मचारी को करते है। विकट परिस्थिति में हस्तान्तरण नहीं करने वाले कर्मचारियों को भी इससे छूट होती है।

नियम 63:- अवकाश के साथ सार्वजनिक अवकाशों के संयोजन की व्यवस्थाः- इस नियम के तहत यदि अवकाश पर जाने से पहले कोई सार्वजनिक अवकाश हो तो उसका कर्मचारी के वेतन व अवकाश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा । यदि अवकाश से पुनः आते समय कोई सार्वजनिक अवकाश हो तथा कर्मचारी ने कार्यभार हस्तान्तरण नहीं किया हो तो उस सार्वजनिक अवकाश का कर्मचारी के वेतन व अवकाश वेतन पर असर पड़ेगा। दिनांक 15.09.1998 से कर्मचारी एक वर्ष में दो ऐच्छिक अवकाश (RH) ले सकता है।

नियम 64:-अवकाश पर नियोजन स्वीकार करना:- व्यापार निषेध । अवकाश काल में कर्मचारी ऐसा कोई कार्य नहीं कर सकता, जिसके तहत उसे आर्थिक रूप से फायदा हो तथा अवकाश काल में कर्मचारी ऐसा करता है तो अनुशासनात्मक कार्यवाही की जायेगी। अपवादः-यदि कोई कर्मचारी साहित्यिक गतिविधि कर रहा है तो इससे प्राप्त आय इस नियम के तहत मानी जायेगी। पेशे से जुड़े मामलों में कर्मचारी को एक समय सीमा तक नियोजन करने की अनुमति प्रदान की जाती है। वैदेशिक सेवा में नियम 64 के प्रावधान लागु नहीं होते है।

नियम 65:- सेवानिवृति तिथि के बाद अवकाश की अस्वीकृतिः- इस नियम के तहत यदि कोई कर्मचारी सेवानिवृति तिथि से पहले अवकाश पर चला जाता है तथा इस अवकाश के दौरान सरकार द्वारा उसका कार्यकाल बढ़ा दिया जाता है तो वह कर्मचारी उसी दिन से ऑन ड्यूटी मान लिया जाता है जिस दिन कार्यकाल बढ़ाने के आदेश जारी हुए है तथा कर्मचारी के शेष अवकाश को आगे की सेवा में समायोजित कर दिया जाता है ।

नियम 66:- अवकाश से कर्मचारी को वापस बुलाना:- इस नियम के तहत यदि कर्मचारी को अवकाश से वापस बुलाया जावे तो यदि वापिस आने की आवेदन पत्र में अनिवार्य शर्त हो तो कर्मचारी पत्र प्राप्त होते ही ऑन ड्यूटी हो जायेगा तथा वापिस आते समय यात्रा व समस्त सुविधायें सरकारी खातें पर करेगा। नोट:-लेकिन कर्मचारी इस अवधि के दौरान अवकाश वेतन ही प्राप्त करता है। यदि कपिस आना कर्मचारी के स्व-विवेक पर हो तो उसे किसी प्रकार के यात्रा व सुविधायें देय नहीं होगी ।

नियम 67:- अवकाश आवेदन पत्र का प्रारूप:- इस नियम के तहत अवकाश पर जाने वाला कर्मचारी एक निर्धारित प्रपत्र में अपना आवेदन सक्षम अधिकारी को देगा।

नियम 68:- वैदेशिक सेवा के अवकाश नियमों की जानकारी:- वैदेशिक सेवा में स्थानान्तरित किसी भी राज्य कर्मचारी को वैदेशिक सेवा में जाने से पूर्व उन सभी नियमों की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए जिनसे वैदेशिक सेवा के दौरान उसका अवकाश आदि नियमित होगा ।

नियम 69:- (दिनांक 11.05.1962) वैदेशिक सेवा में 120 दिन से ज्यादा के उपार्जित अवकाश लेना चाहे तो उसे अपना अवकाश आवेदन प्रपत्र महालेखाकार कार्यालय में प्रेषित करना होगा तथा आवेदन पत्र की जांच के बाद ही वैदेशिक नियोजक द्वारा उसे अवकाश दिया जावेगा|

नियम 70:- राजपत्रित अधिकारियों को चिकित्सा प्रमाण पत्र का प्रारूप (दिनांक 07.09.2010 के बाद से) इस नियम के तहत राजपत्रित अधिकारियों को चिकित्सा सम्बन्धी अवकाशों के लिए आवेदन पत्र का प्रारूप है।

राजस्थान सेवा नियम (RSR)नियम 71-72:- विलोपित (दिनांक 05.12.1980 से)

नियम 73:- (दिनांक 05.12.1980 से लागु) संदिग्ध मामलों में 14 दिन की मेडिकल अभिरक्षाः- राजपत्रित अधिकारियों को चिकित्सा सम्बन्धी अवकाश के लिए सक्षम अधिकारी द्वारा 14 दिन की मेडिकल अभिरक्षा रखने का प्रावधान है।

नियम 74:- (दिनांक 05.12.1992) राजपत्रित अधिकारियों को चिकित्सा प्रमाण पत्र अवकाश: 

1. इस नियम के तहत सामान्य तौर पर किसी राजपत्रित अधिकारी को चिकित्सा प्रमाण पत्र पर 60 दिन का अवकाश देय है।

2. यदि राजपत्रित अधिकारी सीएमएचओ स्तर का चिकित्सा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें तो अवधि 60 से 90 दिन तक बढ़ाई जा सकती है। 3. यदि राजपत्रित अधिकारी अन्तः रोगी हो तो जब तक वह अस्पताल में भर्ती है तब तक उसे अवकाश स्वीकृत कर सकते है।

4. दिनांक 16.10.1989 के बाद राजपत्रित अधिकारियों को 15 दिन का अवकाश होम्योपैथिक चिकित्सक भी स्वीकृत कर सकते है। राज्य सिविल सेवा चिकित्सा परिचर्या नियम 2008 के तहत कुछ निजी अस्पतालों को भी राजपत्रित अधिकारियों के ईलाज के लिए अधिकृत किया गया है।

5. दिनांक 01.01.2004 के बाद आपातकाल की परिस्थितियों में सामान्य तौर पर निजी अस्पतालों को भी राजपत्रित अधिकारियों के लिए अधिकृत किया गया है

नियम 75:- चिकित्सा प्रमाण पत्र अवकाश का अधिकार नहीं है ।

नियम 76:- अराजपत्रित अधिकारियों को चिकित्सा प्रमाण पत्र पर अवकाश:- (दिनांक 30.06.1980 से लागू) अराजपत्रित अधिकारी आरएमपी (रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर) चिकित्सक से लिया गया प्रमाण पत्र प्रस्तुत करे तो अवकाश देय है।

नियम 77:- चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को चिकित्सा प्रमाण पत्र पर अवकाशः- इस नियम के तहत चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को किसी भी स्तर का चिकित्सा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने पर अवकाश देय होता है।

नियम 78:- अयोग्यता पर अवकाश अस्वीकृत करना:- इस नियम के तहत चिकित्सक को यदि लगे कि उसके द्वारा जिस कर्मचारी को अवकाश स्वीकृत किया जा रहा है वह इसके लिए अयोग्य है तो वह उसके अवकाश की सिफारिश नहीं करता है।

नियम 79:- इस नियम के तहत चिकित्सक कर्मचारी के आवेदन पत्र पर यह स्पष्ट रूप से अंकित करता है कि इसके द्वारा अवकाश में की गई अनुशंषा कर्मचारी का अधिकार नहीं है।

नियम 80:- अवकाश के दावों के निस्तारण में प्राथमिकता:

1. अवकाश के दावों के निस्तारण में सार्वजनिक हित को ध्यान में रखा जाता है।

2. कर्मचारी के अवकाश खाते की प्रवृति को देखते हुए अवकाश स्वीकृत किये जाते है।

 3. कर्मचारी का यह व्यक्तिगत दायित्व है कि वह अपने उपार्जित अवकाश के लेखे का संधारण करें। 

4. कर्मचारियों की आकस्मिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सक्षम अधिकारी अपने विवेक के अनुरूप अवकाश स्वीकृत करने का अधिकार रखता है।

5. विभागाध्यक्ष कर्मचारी द्वारा अपने अवकाश के लिए बताये गये कारण की अपने स्तर पर समीक्षा कर सकता है।

नियम 81:- (दिनांक 28.09.1957 से) प्राथमिक दृष्टि में मेडिकल रूप से अयोग्य कर्मचारी के अवकाश की स्वीकृति:- (अवकाश खाते में अवकाश होने पर) इस नियम के तहत यदि चिकित्सक को लगे कि अवकाश पर जाने वाला कर्मचारी मेडिकल रूप से अयोग्य है तो वह उसके अवकाश लेखे की समीक्षा के आधार पर अधिकतम 12 माह का अवकाश स्वीकृत कर सकता है तथा 06 माह बाद उस कर्मचारी का पुनः मेडिकल परीक्षण करने के बाद आगे की अवकाशों की आज्ञा जारी कर सकता है।

नियम 82:- बर्खास्त/निलम्बन के मामले में अवकाश की अस्वीकृतिः- सक्षम अधिकारी का दायित्व है कि कर्मचारी के निलम्बन काल में किसी भी प्रकार का अवकाश स्वीकृत नहीं किया जावें ।

नियम 83:- स्वस्थ होने का प्रमाण पत्र:- दिनांक 05.12.1980 से) इस नियम के तहत सक्षम अधिकारी का यह दायित्व है कि वह चिकित्सीय आधार पर अवकाश पर गये कर्मचारी के लौटने पर स्वस्थ होने का प्रमाण पत्र प्राप्त करें।

राजस्थान सेवा नियम (RSR)नियम 84:- विलोपित

नियम 85:- (दिनांक 14.07.1955 से) नियत तिथि से पूर्व अवकाश से लौटनाः- इस नियम के तहत कर्मचारी अवकाश समाप्ति की अवधि से पहले पुनः विभाग में अवकाश स्वीकृता प्राधिकारी की अनुमति के बिना नहीं लौट सकता है।

नियम 86:- अवकाश समाप्ति के बाद अनुपस्थिति या दुराचरणः- ( दिनांक 12.01.1976 से )

1. इस नियम के तहत यदि कर्मचारी नियत तिथि के बाद भी अवकाश पर से न लौटे तो सक्षम अधिकारी उसकी पिछली सेवा को जब्त कर सकता है।

2. इस नियम के तहत यदि कर्मचारी नियत तिथि के बाद के समय का कोई उचित कारण बताये तो उस अवधि को असाधारण अवकाश के तहत माना जा सकता है। 

3. वर्गीकरण नियंत्रण अपील नियम के तहत यदि कर्मचारी 30 दिन से ज्यादा अनुपस्थिति दर्ज करता है तो उस पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जावेगी तथा इसके तहत सेवा से निलम्बन या बर्खास्त भी किया जा सकता है। 

4. दिनांक 20.08.2001 के बाद यदि कर्मचारी निरन्तर 05 वर्ष से अधिक अनुपस्थित रहे तो तत्काल प्रभाव से उसे बर्खास्त कर दिया जावेगा।