सामान्यतया पेंशन से आशय निर्धारित नियम एवं प्रावधानों के तहत राजस्थान सरकार के राज्य कर्मचारी को सेवानिवृत्त होने के पश्चात् किये जाने वाले मासिक भुगतान से है । उक्त भुगतान निर्धारित शर्तों के आधीन सेनानिवृत्त कर्मचारी की मृत्यु तक लगातार देय होता है। कर्मचारी/ पेंशनर की मृत्यु होने पर इन नियमों के प्रावधानों के अनुसार उनके पारिवार के सदस्यों की परिवारिक पेंशन भी देय होती है।
पेंशन नियम 50(1 ) पन्द्रह वर्ष की सेवा के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति एवं नियम 53(1)- पन्द्रह वर्ष की सेवा या 50 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) पर नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा अनिवार्य सेवानिवृत्ति वाले कर्मचारी की सेवानिवृत्ति की तिथि का दिन अकार्य दिवस मानी जावेगी। अन्य प्रकार की सेवानिवृत्ति / मृत्यु होने पर सेवानिवृत्ति की तिथि कार्य दिवस के रूप में गिनी जावेगी। (नियम 4)
नोट : “राज्य सरकार ने 1.1.2004 व इसके पश्चात् राज्य सेवा में नियुक्त कर्मचारियों व अधिकारियों पर राजस्थान सिविल सेवा (अंशदायी पेंशन) नियम 2005 लागू कर दिये हैं। अतः 1.1.2004 व इसके पश्चात् नियुक्त कर्मचारियों व अधिकारियों पर इस पुस्तिका में वर्णित पेंशन नियम लागू नहीं होंगे।
1-पेंशन निर्धारण के मूल तत्त्व
(क) पेंशन योग्य (अर्हकारी) सेवा में कार्यरत रहने की कुल अवधि
(ख) पेंशन गणना हेतु मान्य परिलब्धियां
(ग) सेवानिवृत्ति के दिन राज्य सरकार द्वारा पेंशन गणना हेतु निर्धारित मापदण्ड व विधि (formula)
(क) पेंशन गणना हेतु मान्य सेवा अवधि
(1) सेवावधियाँ जिन्हें पेंशन हेतु नहीं गिना जावेगाः
किसी भी सेवानिवृत्त कर्मचारी को देय पेंशन की राशि उसके द्वारा राज्य सरकार की पेंशन योग्य सेवा में व्यतीत की गई अवधि पर आधारित होती है किन्तु निम्न प्रकार की सेवा अवधि को पेंशन योग्य सेव से कम कर दिया जाता है:-
(i) 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने से की गई सेवाएँ ।
(ii) (ii) शिक्षार्थी (apprentice) के रूप में की गई सेवाएँ ।
(iii) असाधारण अवकाश जो कि सक्षम चिकित्साधिकारी द्वार प्रदत्त चिकित्सा प्रमाण पत्र के बिना स्वीकृत किया गया हो।
नोट : वैज्ञानिक /तकनीकी माध्यम तथा प्राकृतिक आपदाओं के कारण अनुपस्थित होने पर स्वीकृत असाधारण अवकाश की पेंशन हेतु अर्हक मानी जावेगी।
(iv) अधिवार्षिक आयु पर सेवानिवृत्ति के पश्चात् राज्य सेवा में कार्यरत रहने की अवधि, निलम्बन अवधि, व अन्य कोई सेवा में व्यवधान जो कि सक्षम आदेशों के तहत पेंशन हेतु मान्य नहीं किये हों।
(v) वर्कचार्जड सेवायें जब तक वे नियमानुसार पेंशन हेतु मान्य नहीं की गई हों।
(II) पेंशन योग्य सेवा का प्रारम्भ
इस सम्बन्ध में मुख्य शर्तें निम्नानुसार हैं:
(i) नियुक्ति राज्य सरकार के अधीन निर्धारित शर्तों के अनुरूप अनुमोदित वेतन श्रृंखला में नियमित पेंशन योग्य पद पर होनी चाहिए ।
(ii) सेवाएं बिना व्यवधान के होनी चाहिए । चाहे वे एक या अधिक विभाग या वर्ग (cadre) में की गई क्यों न हों ।
(iii) (सेवा का भुगतान राज्य सरकार द्वारा संचित निधि (Consolidated) से किया जाना चाहिए । यहाँ पर उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार की अनुमति से अन्य संस्थाओं में प्रतिनियुक्ति पर की गई सेवाएं भी पेंशन हेतु मान्य होंगी। किन्तु इस हेतु सम्बन्धित अधिकारी जिस वेतन श्रृंखला में वेतन प्राप्त कर रहा है उसके अधिकतम की 10 प्रतिशत राशि (पेंशन अंशदान ) सम्बन्धित संस्था या सम्बन्धित अधिकारी (जैसी भी स्थिति हो ) के द्वारा निर्धारित प्रक्रियानुसार संचित निधि कोष में जमा कराना आवश्यक है।
(III) सेवाओं का जब्त होना
(i) किसी राज्य कर्मचारी को सेवा से हटाये जाने या उसकी सेवाएं समाप्त करने पर उसके द्वारा पूर्व में की गई सेवाएं जब्त मानी जानी जाती हैं। (नियम 23)
(ii) इसी प्रकार सेवा या पद से त्याग पत्र स्वीकार होने पर भी पूर्व में की गई सेवाएं जब्त मानी जाती हैं। (नियम 25) यहां यह उल्लेखनीय है कि किसी कर्मचारी द्वारा सेवा समाप्ति या जबरन सेवानिवृत्ति के विरूद्ध अपील किये जाने पर यदि सक्षम अधिकारी द्वारा उसे बहाल किया जाता है तो पिछली जब्त की गई सेवाएं पेंशन योग्य होंगी किन्तु सेवा समाप्ति व सेवा बहाली के बीच के व्यवधान को पेंशन योग्य नहीं माना जायेगा जब तक कि बहाली के आदेश जारी करने वाले अधिकारी के द्वारा उक्त व्यवधान को ड्यूटी मानकर या व्यवधान अवधि का अवकाश स्वीकृत कर उसे नियमित न कर दिया गया हो। (नियम 24)
(iii) पेंशन हेतु भावी सदाचार आवश्यक: पेंशन और उसको जारी रखने की स्वीकृति हेतु भावी सदाचरण एक अन्तर्निहित शर्ते है। यदि पेंशनर किसी गम्भीर अपराध या गम्भीर कदाचरण का दोषी पाया जाता है तो नियुक्ति प्राधिकारी लिखित आदेश के द्वारा पेंशन या पेंशन के किसी भाग को स्थायी रूप से या किसी निश्चित अवधि के लिए रोक सकेगा या वापिस ले सकेगा। (नियम – 6)
(iv) राज्यपाल को पेंशन या उसके किसी भाग को स्थायी रूप से या किसी एक विनिर्दिष्ट अवधि के लिए रोकने या वापिस लेने का अधिकार है । लेकिन कर्मचारी सेवानिवृत्ति के पश्चात् यह विभागीय कार्यवाही –
(अ) राज्यपाल की स्वीकृति के बिना नहीं की जावेगी;
(ब) ऐसी घटना के सम्बन्ध नहीं होगी जो उसे कार्यवाही के करने के चार से अधिक वर्ष पहले हुई हो;
(स) केवल उन विभागीय कार्यवाहियों पर ही लागू होगी जिनमें सरकारी कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त करने का आदेश उसकी सेवा के दौरान पारित किया जा सकता था। (नियम – 7)
(v) यदि किसी सरकारी कर्मचारी पर अधिवार्षिकी आयु प्राप्त करने पर कोई विभागीय या न्यायिक कार्यवाहियों स्थापित की जाती है / चालू है तो उसे नियम 90 के प्रावधानों के अनुसार 100% अनन्तिम पेंशन (Provisional Pension) स्वीकृत की जावेगी, लेकिन ग्रेच्युटी रोकी जावेगी । (नियम 7( 4 ) एवं 90 )
(vi) नोट :- लघु शास्ति (Minor Penalty) की कार्यवाहीयाँ पेंशन पर प्रभाव नहीं डालती। अतः सी. सी.ए. 17 के अन्तर्गत चल रही कार्यवाही के कारण पेंशन के प्रकरण नहीं रोके जाँय। (नियम 7 के राजकीय निर्णय सं. 6)
(IV) सेवा की गणना की पद्धति
नियमों के अधीन पेंशन अवधि की गणना छह महीनों के खण्डों में की जाती है। इस हेतु छह माह कम अवधि के मामलों में निम्न प्रावधान है :
(i) तीन माह से कम की सेवा अवधि | शून्य |
(ii) तीन माह या उससे अधिक की सेवा होने पर मान्य अवधि | मान्य अवधि छ: माह |
उदाहरण : यदि किसी कर्मचारी ने 31 वर्ष या 10 माह 27 दिन की सेवा की है तो उसकी पेंशन योग्य सेवा अवधि छः माह 64 खण्डों के रूप में मानी जायेगी। यह भी उल्लेखनीय है कि 28 वर्ष से अधिक सेवा करने पर भी उसे 28 वर्ष अर्थात् छः माह के 56 खण्डों के रूप में ही माना जायेगा अर्थात् पेंशन गणना हेतु अधिकतम 28 वर्ष तक की सेवाओं को ही मान्यता दी गई है। (नियम 54(2))
नोट : अधिसूचना सं. एफ 12(2 ) वित्त/ नियम/ 08 1 दिनांक 6-4-2013 द्वारा राज्य सरकार ने दिनांक 1.7.2013 व इसके पश्चात से सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों के मामले में 28 वर्ष की पेंशन योग्य (अर्हकारी) सेवा पूर्ण होने पर निर्धारित परिलब्धियों की 50 प्रतिशत पेंशन देने का प्रावधान किया है । 28 वर्ष से कम पेंशन योग्य (अर्हकारी) सेवा पूर्ण होने पर देय 50 प्रतिशत पेंशन के अनुपात में नियमानुसार पेंशन की गणना की जोवेगी 1.7.2013 से पूर्व सेवानिवृत्त कर्मियों के लिए यह सेवावधि 33 वर्ष थी।
(ख) पेंशन के लिए परिलब्धियों की गणना
राजस्थान सिविल सेवा पेंशन नियम 1996 के तहत पेंशन परिलब्धियों से आशय राजस्थान सेवा नियम 7(24) में परिभाषित वेतन से माना जाता रहा है।
परिलब्धियाँ जो कर्मचारी सेवानिवृत्ति पूर्व पद के पे मैट्रिक्स में लेबिल में वेतन प्राप्त कर रहा था या जिसके लिए हकदार था। साथ ही कर्मचारी द्वारा प्राप्त विशेष वेतन, पैक्टिसबन्दी भत्ता, नॉनक्लिनिकल भत्ता (एन.पी.ए./ एन.सी.ए.) को भी सेवानिवृत्ति से ठीक 10 माह पूर्व के औसत के आधार पर परिलब्धियों के रूप में गिना जाता रहा।
1.1.2016 के बाद एन.पी.ए. की गणना पिछले तीन साल में से कम से कम 2 वर्ष आहरित होना आवश्यक है। यदि 2 वर्ष से कम अवधि में आहरित किया है तो उसी अनुपात में गणना की जावेगी।
दिनांक 1.7.2004 व इसके पश्चात से 1.1.2006 तक 50 प्रतिशत मंहगाई भत्ते को मंहगाई वेतन मानते हुए मूल वेतन में जोड़कर परिलब्धियों के रूप में गिना जाता रहा हैं।
पुनरीक्षित वेतनमान 2008 (दिनांक 1.1.2006 से लागू नगद लाभ दिनांक 1.1.2007 से देय) से 31.12.2015 तक पेंशन हेतु परिलब्धियों से तात्पर्य चालू वेतन बैण्ड (रनिंग पे बैण्ड) में वेतन व ग्रेड वेतन (ग्रेड पे) तथा प्रैक्टिसबन्दी भक्ते नॉनक्लिनिकल भक्ते (एन.पी. ए/एन.सी.ए) के योग से है जो कर्मचारी सेवानिवृत्ति पूर्व प्राप्त कर रहा था या जिसके लिए हकदार था अथवा सेवानिवृत्ति से 10 माह पूर्व के औसत आधार पर गणना राशि जो भी लाभप्रद हो से है। दिनांक 1.6.2009 से विशेष वेतन को भी उक्तानुसार परिलब्धियों में माना गया है।
राजस्थान सिविल सेवा (पुनरीक्षित वेतन मान) नियम, 2017 के अनुसार मूल वेतन से अभिप्राय राजकीय कर्मचारी द्वारा निर्धारित पे मेट्रिक्स के पे लेविल में आहरित किया जा रहे वेतन से है।
- पेंशन गणना हेतु निर्धारित मापदण्ड
राज्य कर्मचारियों के पेंशन हेतु दावों का निस्तारण उनकी सेवा के समय प्रभावी प्रावधानों व नियमों के तहत ही किया जाता है। साथ ही पेंशन में संशोधन आदि समय-समय पर राज्य सरकार द्वारा जारी आदेशों के तहत ही किये जाते हैं। (नियम – 4(1)