निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक 2009 (Right to Education Act 2009)

>>संविधान के छियासीवें संशोधन से अनुच्छेद 21ए के द्वारा शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है।
>>उस संशोधन के क्रियान्वयन के लिए शिक्षा का अधिकार विधेयक, 2009 में पास हुआ, राष्ट्रपतिजी द्वारा इसे अगस्त में स्वीकार किया गया।
>>1 अप्रैल, 2010 से इस कानून को देश में लागू किया गया।

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक 2009 (Right to Education Act 2009) बालक/बालिकाओं के अधिकार

>> निःशुल्क शिक्षा का अर्थ है ऐसी कोई वित्तीय अड़चन न हो जिसके कारण कोई भी बालक/बालिका आठ साल तक की स्कूली शिक्षा से वंचित रह जाए।
>>अनिवार्यता का अर्थ है सरकार पर यह बाध्यता कि वह ऐसे स्कूली तंत्र की व्यवस्था करे कि जिसमेंपढ़ाई करने के लिए बालक/बालिकाएं उत्साहित हों।
>>विकलांग बालक/बालिकाओं के लिए विकलांगता (बराबरी के अवसर, संरक्षण तथा पूरी सहभागिता) अधिनियम 1996 के तहत निर्देशित व्यवस्थाओं को लागू किया जाना है।
>>कक्षा आठ तक किसी भी बालक/बालिका को फेल नहीं किया जा सकता।
>>किसी भी बालक/बालिका को शारीरिक दंड नहीं दिया जा सकता, न उनका मानसिक उत्पीड़न किया जा सकता है।

लड़कियों और बंचित वर्ग के लिए विशेष व्यवस्थाएं

>>इन श्रेणियों को प्राथमिकता।
>>आवश्यकतानुसार छात्रावास तथा घर से स्कूल के बीच यात्रा व्यवस्था ।
>>कार्यनीति का निर्धारण 1986 की शिक्षा नीति के अनुरूप।
>>कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय, एनपीईजीईएल तथा महिला सामाख्या में आवश्यक संशोधन ।
>>वंचित वर्ग तथा अल्पसंख्यकों के लिए वजीफे तथा अन्य प्रोत्साहन व्यवस्थाएं।

आयु के अनुसार भरती व स्पेशल प्रशिक्षण 

>>जो बालक/बालिकाएं स्कूल में भरती नहीं हुए या आठवीं पास करने से पहले स्कूल छोड़ दिया उन्हें उनकी आयु के अनुसार कक्षा में भरती किया जाना है।
>>भरती के बाद उन्हें स्पेशल प्रशिक्षण दिया जायेगा ताकि वे अपनी कक्षा के अन्य बालक/बालिकाओं के साथ पढ़ाई जारी रख सकें।
>>नियमों और रिपोर्ट में कहा गया है कि तीन माह से दो वर्ष तक के स्पेशल प्रशिक्षण आयोजित किये जाएंगे, जिनमें स्वैच्छिक संस्थाओं की भागीदारी को महत्व दिया गया है। रिपोर्ट में सिफारिश है कि तीन माह से कम के प्रशिक्षण भी हो सकेंगे।
>>स्पेशल प्रशिक्षण के शिक्षाक्रम में जीवन कौशल शामिल होगा। यह कार्य खासतौर से गठित समूहों द्वारा सम्पन्न किया जायेगा।

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक 2009 (Right to Education Act 2009) स्कूलों के बारे में प्रावधान

>>सभी बालक/बालिकाओं की शिक्षा स्कूल में अपेक्षित है।
>>विभिन्न प्रकार के स्कूल नहीं हो सकते- जैसा शिक्षाकर्मी स्कूल, ईजीएस स्कूल, शिशु शिक्षा केन्द्र।
>>प्रत्येक बालक/बालिका का अधिकार है कि उसे पैदल चलने के एक किलोमीटर के भौतर प्राथमिक विद्यालय और तीन किलोमीटर के भीतर भीतर उच्च प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध हों। छोटी ढाणियों और गलियों में यह कैसे संभव होगा? यह एक प्रश्न है।

>> स्कूलों के लिए मानदंड अधिनियम के शेड्यूल में दिये गये हैं, जिनमें शामिल हैं-
-कक्षा-कक्षो की संख्या तथा अन्य सुविधाएं।
-शिक्षक शिक्षार्थी अनुपात जो प्रति स्कूल निर्धारित किया गया है, 30:1 होगा।
-उच्च प्राथमिक स्तर पर प्रत्येक क्लास के लिए एक शिक्षक।
-शिक्षकों के लिए कार्य के घंटों का निर्धारण किया गया है।
-स्कूलों के लिए कार्य दिवसों का निर्धारण।
-पुस्तकालय।
-खेल का मैदान और खेलकूद सामग्री।

स्कूल

>> केपीटेशन फी पूरी तरह प्रतिबंधित ।
>>विद्यार्थियों की भर्ती के लिए किसी प्रकार का परीक्षण प्रतिबंधित ।
>>प्रत्येक प्राइवेट स्कूल को मान्यता प्राप्त करनी होगी।
>>सभी प्राइवेट स्कूलों को सुनिश्चित करना होगा कि उसकी प्रारम्भिक क्लास (जैसे केजी या नर्सरी या कक्षा-1) में 25 प्रतिशत भर्ती उस क्षेत्र वंचित व पिछड़े वर्ग के बालक/बालिकाओं की हो। इन बालक/ बालिकाओं को निःशुल्क शिक्षा देय होगी।

स्कूल तथा स्कूल प्रबन्धन समिति

>>स्कूलों को लोक सहभागिता से चलाना है, जो स्कूल प्रबंधन समिति (स्कूल मेनेजमेंट कमेटी) के मार्फत होगा। इस समिति में तीन चौथाई सदस्य माता-पिता या अभिभावकों के होंगे। 50 प्रतिशत महिलाएं होंगी।
>>कमजोर तथा वंचित वर्ग का प्रतिनिधित्व गांवों में उनकी आबादी के अनुसार होगा, उनके विकास का नियोजन करें, उसका प्रबन्धन देखें और समय-समय पर उसकी प्रगति का जायजा लें।
>> स्कूल प्रबन्धन समिति के सदस्यों का सघन प्रशिक्षण प्रस्तावित है।

शिक्षक

>>उनकी अकादमिक तथा प्रशिक्षण की योग्यताएं वे होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा तय की गई संस्था निर्धारित करें, जैसे एनसीटीई।
>>शिक्षकों की अकादमिक जिम्मेदारियाँ की गई हैं।
>>वे प्राईवेट ट्यूशन नहीं कर सकेंगे।
>> शिक्षकों को जनगणना, प्राकृतिक विपदाओं तथा आम चुनावों के अलावा किसी प्रकार का गैर-शैक्षिक कार्य नहीं दिया जा सकेगा।

शिक्षकों से अपेक्षाएं

उनसे महत्वाकांक्षी अपेक्षाएं हैं-
>>वे एसएमसी के कार्य में पूरा सहयोग करें।
>>स्थानीय समाज तथा माता-पिता के प्रति जवाबदेह होंगे।
>> शारीरिक/मानसिक दंड नहीं देंगे और न ही विद्यार्थी-विद्यार्थी में किसी प्रकार का भेदभाव करेंगे।
नियमित रूप से समय पर स्कूल आयेंगे और स्कूल में शैक्षिक कार्य ही करेंगे।
>>यह विधेयक अपेक्षा करता है कि शिक्षक नैतिकता के आधार पर कार्य करेंगे। परन्तु ऐसा न करने पर उन्हें नियमानुसार दण्डित किया जाएगा।

शिक्षाक्रम

>> समग्र दृष्टि : शिक्षाक्रम, पठन/पाठन सामग्री, शिक्षार्थी मूल्यांकन तथा प्रशिक्षण, ये सभी एक दूसरे को सुदृढ़ करें। शिक्षाक्रम निर्धारित करने के लिए केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारें उपयुक्त अकादमिक संस्थाएं निर्धारित करेंगी।
>> शिक्षाक्रम के लिए आवश्यक होगा कि- वह संविधान में लिखित मूल्यों के अनुरूप हों। बालक/बालिकाओं पर किसी प्रकार का डर या घबराहट पैदा न करें।
>>वह बाल केन्द्रित तथा गतिविधि आधारित हो।
>>शिक्षण का माध्यम यथासंभव बालक/बालिकाओं की मातृभाषा हो।
>>हर स्कूल में शिक्षकों के द्वारा व्यापक तथा अनवरत मूल्यांकन की व्यवस्था हो।
>>आठवीं कक्षा तक किसी प्रकार की बाह्य परीक्षा या पास/फैल वाली परीक्षा लागू नहीं की जा सकती।

स्वैच्छिक संस्थाओं की भागीदारी

>>स्वैच्छिक संस्थाओं के साथ प्रोजेक्ट आधारित सहयोग न होकर व्यवस्थाजनक सहयोग अपेक्षित है।
>> सर्व शिक्षा अभियान में इस समय जो सहयोग हो रहा है उसके अलावा वातावरण निर्माण में – इस अधिकार को आंदोलन का स्वरूप देना।
>> स्कूल प्रबन्ध समिति तथा पंचायती राज के लोगों के प्रशिक्षण ।
>> शिक्षाक्रम के निर्माण में।
>>यह देखना कि लड़कियों और पिछड़े वर्ग के बच्चों के साथ बराबरी का रिश्ता रखा जाता है। >>विकलांगों का शिक्षण करवाना।
>>आयु अनुसार भरती के बाद स्पेशल प्रशिक्षण मुहय्या करवाना।
>>क्षेत्र आधारित जिम्मेदारी।
>>यह देखना कि अधिकार दरअसल बालक/बालिकाओं तक पहुँचे।

केन्द्र सरकार के कर्तव्य

>>राष्ट्रीय शिक्षाक्रम का फ्रेमवर्क तैयार करना ।
>>प्रशिक्षण के मानदंड तथा व्यवस्थाएं निर्धारित करना।
>>राज्य सरकारों को तकनीकी सहायता तथा वित्त उपलब्ध करवाना तथा उन्हें नवाचार और अनुसंधान करने के लिए मदद करना।
>>इस विधेयक के क्रियान्वयन के लिए वित्त की जरूरत का अनुमान लगाना।
>>जैसा भी राज्य सरकारों के साथ मंत्रणा के बाद तय हो तद्नुसार राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता देना।
राष्ट्रीय परामर्शदात्री समिति का गठन करना और उसके माध्यम से इस विधेयक के क्रियान्वयन का अनुश्रवण करना।

राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकायों के कर्तव्य

>>यह सुनिश्चित करना कि सभी बालक/बालिकाओं को अच्छे स्तर की निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध हो।>>यह सुनिश्चित करना कि सभी बालक/बालिकाओं को अच्छे स्तर की निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध हो।
>>निर्धारित मानदंड के अनुसार आगामी तीन वर्ष में सभी बालक/ बालिकाओं के लिए स्कूल उपलब्ध करवाना। इसके लिए सामाजिक मानचित्रण किया जाना है।
>>यह सुनिश्चित करना कि कमजोर और वंचित वर्ग के बालक/ बालिकाओं के साथ किसी प्रकार का भेदभाव न हो।
>>सभी स्कूलों के लिए शेड्यूल में निर्धारित सुविधाएं उपलब्ध करवाना।
>>बालक बालिकाओं को उनकी आयु के अनुसार कक्षा में भर्ती करवाना और उनके लिए स्पेशल प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
>>यह देखना कि बालक/बालिकाओं की भर्ती में विधेयक के अनुसार सहजता रहे और प्रत्येक विद्यार्थी नियमित रूप से स्कूल में आये तथा आठवीं तक की पढ़ाई पूरी करे।
>> शिक्षाक्रम निर्धारित करना, शिक्षकों की नियुक्ति करना तथा उनके प्रशिक्षण को देखना।

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक 2009 (Right to Education Act 2009) दण्ड विधान

>> ट्रांसफर सर्टिफिकेट देने में आनाकानी करने या विलंब करने पर संस्था प्रभारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई।
>> माता-पिता/अभिभावकों का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों को स्कूल में भरती करें और उनकी नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करें।
>> यदि कोई स्कूल केपीटेशन फी लेता है तो उस पर ली गई केपीटेशन फी का दस गुना जुर्माना।
>> यदि कोई स्कूल भरती के लिए किसी भी प्रकार की स्क्रीनिंग करता है तो उस पर पहले केस में 25,000 तक और उसके हर केस में 25,000 तक और उसके बाद हर केस में 50,000 तक का जुर्माना।
>> किसी विद्यार्थी को शारीरिक दंड या मानसिक उत्पीड़न देने की स्थिति में सम्बन्धित व्यक्ति के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई होगी।
>> बिना मान्यता के स्कूल चलाने सम्बन्धित अधिकारी द्वारा मान्यता रद्द कर देने और उसके बाद भी स्कूल चलाते रहने की स्थिति में 10,000 का जुर्माना और स्कूल के चलते रहने पर प्रतिदिन 10,000 का जुर्मांना। वे शिक्षक जो विधेयक में लिखित कर्तव्य पूरे नहीं करते उनके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई।

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक 2009 (RTE Act 2009) शिक्षा के अधिकार का उपयोग

>> अधिकार से वंचित होने पर सबसे पहले स्थानीय निकाय स्तर पर शिकायत ।
>> उसके ऊपर राज्य स्तरीय बाल अधिकार संरक्षण कमीशन के पास शिकायत।
>>एनसीपीसीआर सारे तंत्र का निरीक्षण करेगा, वह- देखेगा कि स्थानीय निकाय और राज्य कमीशन स्तर पर ठीक से कार्रवाई हो ।
>> जहाँ बाल अधिकारों का हनन बड़े पैमाने पर हो रहा है वहाँ प्रभावी हस्तक्षेप करेगा। वह हर राज्य के लिए विशेष कमीश्नर नियुक्त करेगा। यह विधेयक हर पीड़ित व्यक्ति तथा हर नागरिक को अधिकार देता है कि जरूरत पड़ने पर वे अदालत का सहारा लें।