Functions, duties and role of School Mananagement Committee (SMC)

1- विद्यालय के क्रियाकलापों/कार्य करण को माॅनिटर करना –

  • विद्यालय के आस-पड़ौस में रहने वाली आबादी/जनता को बाल अधिकारों की सामान्य एवं रचनात्मक तरीकों से जानकारी देना तथा साथ ही राज्य सरकार स्थानीय प्राधिकारी, विद्यालय, माता-पिता, अभिभावक एवं संरक्षक के कर्तव्यों की जानकारी देना।
  • समिति विद्यालय में नियुक्त अध्यापकों के विद्यालय में उपस्थित होने में नियमित एवं समय पालन, माता-पिता और संरक्षको के साथ नियमित बैठकें करना और बालक के बारे में उपस्थिति में नियमितता, शिक्षा ग्रहण करने का सामथ्र्य, शिक्षण में की गई प्रगति और किसी अन्य सुसंगत जानकारी के बारे में अवगत कराना तथा शिक्षक/शिक्षिकाओं द्वारा प्राईवेट ट्यूशन या प्राईवेट क्रियाकलाप नहीं करना, सुनिश्चित करेगी।
  • 10 वर्षीय जनसंख्या/जनगणना, आपदा (विभीषिका) राहत कत्र्तव्यों या यथा स्थिति, स्थानीय संस्थाओं /निकायों या राज्य विधान मण्डलों या सं सद के निर्वाचनों से संबंधित कर्तव्यों से भिन्न किसी गैर शैक्षणिक प्रयोजननों के लिए शिक्षकों को अभिनियोजित नहीं किए जाने को सुनिश्चित करेगी/माॅनिटरिंग करेगी।
  • विद्यालय के आस-पड़ौस के 6-14 आयु वर्ग के सभी बालक-बालिकाओं के विद्यालय मंे नामांकन व उसकी सतत उपस्थिति को सुनिश्चित करेगी।
  • विद्यालय के लिए राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मान एवं मानकों की पालना पर निगरानी रखेगी।
  • बाल अधिकारों के हनन विशेषकर बालकों को भौतिक एवं मानसिक प्रताड़ ना संबंधी प्रकरणों, प्रवेश नहीं दिए जाने, निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने संबंधी प्रावधानों के उल्लंघन संबंधी प्रकरणों को स्थानीय प्राधिकारी के ध्यान में लायेगी।
  • आवश्यकताओं का चिन्हिकरण करते हुए योजना का निर्माण करेंगे तथा 6-14 आयु वर्ग के विद्यालय में कभी भी प्रवेश न लेने वाले तथा ड्राॅपआउट बालकों के लिए किए गये शिक्षा व्यवस्था संबंधी प्रावधानों की क्रियान्विति पर निगरानी रखेगी।
  • विशेष आवश्यकता वाले एवं अधिगम अक्षम बालकों के चिन्हिकरण, उसके विद्यालय में नामांकन, सीखने हेतु सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर निगरानी रखेगी तथा गतिविधियों में उनकी भागीदारी तथा प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करना सुनिश्चित करेगी।
  • विद्यालय में मध्यह्न भोजन के क्रियान्वयन पर निगरानी रखेगी।
  • विद्यालय की आय एवं व्यय का वार्षिक लेखा तैयार करेगी।
  • विद्यालय की शैक्षिक गतिविधियों की नियमित समीक्षा कर शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाना।

  • राज्य सरकार/सर्व शिक्षा अभियान अथवा अन्य प्राधिकृत संस्था द्वारा जारी दिशा निर्देशों की पालना सुनिश्चित करते हुए विद्यालय में भौतिक व्यवस्थाएँ जैसे- खेल मैदान, चार दीवारी, कक्षा-कक्ष, सुविधाएँ, फर्नीचर एवं पीने के पानी आदि की व्यवस्था सुनिश्चित करना।
  • समय-समय पर विद्यालय के बालकों के स्वास्थ्य की जाँच करवाना बच्चों के लिए नियमित स्वास्थ्य कैम्पों का आयोजन करवाना।

  • समय-समय पर ड्राॅपआउट दर पर नजर रखना तथा सभी बालाकों का विद्यालय में नामांकन एवं ठहराव सुनिश्चित करना। इसके लिए निःशुल्क पाठ्यपुस्तकों के वितरण, शिक्षण सामग्री, शाला गणवेश आदि समय पर उपलब्ध करवाने की व्यवस्था करना। अभिभावकों एवं अध्यापकों की समय-समय पर संयुक्त बैठकें आयोजित करना एवं उन बैठकों में रिपोर्ट कार्ड, उपलब्धी स्तर, कक्षा कार्य एवं गृह कार्य आदि के संबंध में विचार-विमर्श करते हुए सुधार हेतु आवश्यक कार्यवाही करना।
  • विद्यालय में आयोजित होने वाले विभिन्न राष्ट्रीय, क्षेत्रीय पर्वों, निःशुल्क पाठ्य पुस्तक वितरण, छात्रवृत्ति वितरण, विद्यालय का सत्र् प्रारंभ होने, दीपावली एवं शीतकालीन अवकाश के प्रारंभ एवं पश्चात् विद्यालय में आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेना एवं समाज के सभी वर्गों को इन कार्यक्रमों में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करना।

2- विद्यालय के विकास हेतु विकास योजना तैयार करना और उसकी सिफारिश करना –

  • विद्यालय प्रबंधन समिति, उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति से 3 माह पूर्व जिसमें उसका प्रथम बार गठन हुआ है एक विद्यालय विकास योजना का निर्माण करेगी।
  • उपर्युक्त विद्यालय विकास योजना एक 3 वर्षीय योजना होगी जो अगले 3 वर्ष की तीन वार्षिक योजनाओं को मिलाकर बनाई जायेगी।
  • विद्यालय विकास योजना में निम्नानुसार विस्तृत जानकारियाँ शामिल की जायेगी-

(अ) प्रत्येक वर्ष का कक्षावार अनुमानित नामांकन
(ब) राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मान एवं मानकों के आधार पर 3 वर्ष की अवधि के लिए कक्षा 1 से 5 एवं कक्षा 6 से 8 के लिए पृ थक-पृ थक अतिरिक्त अध्यापकों, विषयअध्यापकों एवं अंशकालीन अध्यापकों की आवश्यकता।
(स) राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मान एवं मानकों के अनुसार 3 वर्ष की अवधि के लिए अतिरिक्त भौतिक संसाधनों एवं उपकरणों की आवश्यकता।
(द) उपरोक्त बिन्दु (ब) (स) की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु 3 वर्ष की अवधि में वर्षवार अतिरिक्त वित्तीय आवश्यकताएं, इन आवश्यकताओं के अन्तर्गत विधेयक की धारा 4 के अन्तर्गत ऐसे बालाकों जिन्हें 6 वर्ष से अधिक की आयु होने पर भी विद्यालय में प्रवेश नहीं दिया गया हो अथवा यदि प्रवे श दिया गया हो तो उसने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं की हो तो उसको उसकी आयु के अनुसार कक्षा में प्रवे श देने पर अन्य बालाकों के समकक्ष रहने के लिए आवश्यक विशेष प्रशिक्षण संबंधी व्यय, बालकों को निःशुल्क पाठ्यपुस्तकंे, गणवेश उपलब्ध करवाने पर होने वाला व्यय तथा विधेयक के प्रावधानों के अन्तर्गत विद्यालय की जिम्मेदारियों के निर्वहन हेतु आवश्यक हो।

उपर्युक्त आधारों पर तैयार की गई विद्यालय विकास योजना पर विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष/उपाध्यक्ष एवं सदस्य सचिव के हस्ताक्षर होने चाहिए तथा इसे वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पूर्व स्थानीय प्राधिकारी को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

3-समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी/संस्था/निकाय अथवा किसी अन्य स्रोत से प्राप्त अनुदानों/ सहायता राशियों के उपयोग को माॅनिटर करना-

  • परिचालन मद में आय व व्यय का जायजा लेना। किसी विशेष मद में आय वांछनीय व्यय से कम होने पर माता-पिता या संरक्षको से वित्तीय सहयोग लेने पर विचार कर वित्तीय सहयोग की राशि के प्रस्ताव साधारण सभा को अनुमोदनार्थ प्रस्तुत करना।
  • विद्यालय एवं विद्यालय प्रबं धन समिति के समस्त कोषों एवं सम्पतियों का परिवीक्षण करना।
  • विद्यालय एवं समिति के वार्षिक आय व्यय का लेखा जोखा रखना।
  • प्रारंभिक शिक्षा विभाग के अन्तर्गत संचालित विभिन्न बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाओं, केन्द्र प्रवर्तित कार्यक्रमों एवं केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार के वित्तीय सहयोग से संचालित योजनाओं/कार्यक्रमों यथा सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत विद्यालयों के विकास, भवन निर्माण, मरम्मत एवं रखरखाव, शिक्षण अधिगम सामग्री, शिक्षण अधिगम उपकरण, विद्यालय फेसिलिटि ग्राण्ट, टी0एल0एम0 ग्राण्ट एवं अन्य ग्राण्ट्स आदि अन्य मदों के अन्तर्गत उपलब्ध कराई गई राशियों/प्रावधानों से निर्माण/विकास कार्य करवाना एवं ग्राण्ट्स का राज्य सरकार/सर्व शिक्षा अभियान, अन्य प्राधिकृत संस्था द्वारा जारी दिशा निर्देशों के अनुसार उपयोग सुनिश्चित कराना।

4- ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करना जो विहित किये जायें-

  • विद्यालय प्रबन्धन समिति ऐसे अन्य कार्यों/कृत्यों की पालना करेगी जो सक्षम सरकार द्वारा विहित किये जायें।
  • विद्यालय प्रबन्धन समिति स्वयं के आर्थिक स्रोतों से अपने स्तर पर आवश्यकतानुसार स्थानीय व्यक्तियों/अध्यापकों/सहायकों की सेवाओं हेतु पूर्णतया अस्थाई व्यवस्था कर सकती है लेकिन इसका भार किसी भी स्थिति में राज्य सरकार पर नहीं पड़ना चाहिए।