राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियन्त्रण एवं अपील) नियम, 1958 के अन्तर्गत अनुशासनात्मक कार्यवाही में अधिरोपित परिनिन्दा के दण्ड का कार्मिक की पदोन्नति पर प्रभाव।

राजस्थान सरकार
कार्मिक (क-2) विभाग’

कमांक प.4 (1) कार्मिक / क-2 / अं.प्र. / 2006 जयपुर, दिनांक 14.5.2013

परिपत्र

विषय: राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियन्त्रण एवं अपील) नियम, 1958 के अन्तर्गत अनुशासनात्मक कार्यवाही में अधिरोपित परिनिन्दा के दण्ड का कार्मिक की पदोन्नति पर प्रभाव।

कार्मिक विभाग के समसंख्यक परिपत्र दिनांक 26.7.2006 की निरन्तरता में यह और स्पष्ट किया जाता है कि राजस्थान सिविल सेवाऐं (वर्गीकरण, नियन्त्रण एवं अपील) नियम, 1958 के अन्तर्गत अनुशासनात्मक कार्यवाही में राज्य सरकार के किसी राजसेवक पर यदि परिनिन्दा का दण्ड अधिरोपित किया जाता है तो उक्त दण्ड का प्रभाव राजसेवक की पदोन्नति पर यह होगा कि उक्त राजसेवक पदोन्नति के लिये दण्ड के पश्चात् 7 वर्षों में जब भी पात्र होगा तो उसे एक बार पदोन्नति से वंचित किया जायेगा। यदि राजसेवक को एक बार से अधिक परिनिन्दा के दण्ड से दण्डित किया गया है तो प्रत्येक परिनिन्दा के दण्ड के लिये पृथक पृथक बार पदोन्नति रूकेगी ।

इस संबंध में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा समय समय पर पारित निर्णयों के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत सिविल अपील संख्या 8404 / 2011 (Arising out of S.L.P. (C) No. 30570 of 2010). राजस्थान राज्य अन्य बनाम शंकरलाल परमार व अन्य में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिनांक 30.9.2011 को निर्णित किया गया है कि ऐसे राजसेवक, जिनका सेवा अभिलेख बिल्कुल स्वच्छ है, की तुलना में, जिस राजसेवक के विरुद्ध परिनिन्दा का दण्ड है वह चयनित वेतनमान का पात्र नहीं होगा। परिनिन्दा के दण्ड से दण्डित राजसेवक चयनित वेतनमान हेतु एक वर्ष बाद पात्र होगा। चयनित वेतनमान पदोन्नति के अभाव में ही प्रदान किया जाता है। अतः माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय का सारांश यह है कि एक परिनिन्दा के दण्ड से दण्डित राजसेवक को एक वर्ष विलम्ब से पदोन्नति मिलेगी अर्थात जितनी बार राजसेवक परिनिन्दा के दण्ड से दण्डित है उसे उतनी ही बार पदोन्नति से वंचित रखना होगा।

राज्य सरकार के ध्यान में यह आया है कि मा० उच्चतम न्यायालय के उक्त निर्णय के उपरान्त भी माननीय उच्च न्यायालय द्वारा कतिपय प्रकरणों में परिनिन्दा के दण्ड को उपेक्षित कर पदोन्नति हेतु विचार करने एवं अन्यथा योग्य पाये जाने पर पदोन्नति पर विचार करने के आदेश पारित हुऐ है। ऐसे प्रकरणों में तत्काल अपील की जानी चाहिये। यदि ऐसे प्रकरणों में अपील करने की समयावधि में कोई निर्णय नहीं लिया गया है अथवा विधि विभाग के स्तर पर भी परीक्षण करवाकर अपील नहीं करने का निर्णय लिया गया हो, इस प्रकार उच्च न्यायालय के उक्त प्रकार के आदेश अन्तिम रूप ले चुके हों तो ऐसे निर्णयों की पालना करनी होगी अन्यथा अवमानना की स्थिति बन सकती है। जिन प्रकरणों में माननीय उच्चतम न्यायालय के उक्त निर्णय के पूर्व माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय हुए हैं, जिनमें परिनिन्दा के दण्ड को उपेक्षित कर पदोन्नति हेतु विचार करने एवं अन्यथा योग्य पाये जाने पर पदोन्नति करने के आदेश पारित हुए हैं, उनमें यदि अपील संबंधी कोई निर्णय नहीं लिया गया है, अथवा अपील नहीं करने का निर्णय विधि विभाग के परामर्श से लिया जा चुका है, इस प्रकार उच्च न्यायालय के आदेश अन्तिम रूप ले चुके हों तो ऐसे निर्णयों की पालना करनी होगी।

जिन प्रकरणों में उच्च न्यायालय के आदेशों में परिनिन्दा के दण्ड को उपेक्षित कर पदोन्नति हेतु विचार करने के निर्देश दिये हुऐ है, ऐसे प्रकरणों में जहां तक सम्भव हो समयावधि अथवा समयावधि समाप्त होने पर भी उचित कारण बताते हुऐ अपील खण्डपीठ में अथवा उच्चतम न्यायालय में मा० उच्चतम न्यायालय के उक्त निर्णय दिनांक 30.9.2011 के परिप्रेक्ष्य में करनी चाहिये। यदि अपील लम्बित हो एवं स्थगन प्राप्त नहीं हुआ हो तो सशर्त अर्थात अपील के अन्तिम निर्णय के अध्यधीन न्यायालय निर्णय की पालना करनी होगी। यदि अवमानना प्रकरण लम्बित हो तो स्थगन प्राप्त करने के प्रयास अवश्य करने चाहिये ।

अतः समस्त विभागाध्यक्षों एवं नियुक्ति प्राधिकारियों से अनुरोध है कि कृपया भविष्य में होने वाली पदोन्नतियों में उक्त दिशा निर्देशों की कठोरता से पालना सुनिश्चित कराई जाये।

प्रमुख शासन सचिव