समग्र विकास एवं पर्यावरण स्थिरता के दिशा निर्देश 2022-23 (Holistic development of children and strengthening local knowledge for environment sustainability)
(श्रीमान आयुक्त एवं राज्य परियोजना निदेशक, राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद् का क्रमांक:- संस्कृशिप/जय/AS&FE/F.82 /Holistic. dev, दिशा-निर्देश/ 2022-23/3578 दिनांक 26/7/2022)
परिकल्पना – प्रारम्भिक कक्षाओं में विद्यार्थियों का समग्र विकास एक महत्वपूर्ण आयाम है, जिसमें विद्यार्थियों को कक्षा अधिगम के साथ-साथ कक्षा के बाहर सीखने, स्थानीय परिवेश और पर्यावरण से सीखने की आवश्यकता होती है। विद्यार्थी स्थानीय परिवेश में पर्यावरण के माध्यम से सबसे अच्छा सीखते हैं। इसलिए उन्हें पर्यावरण से जुड़ने और स्कूल के भीतर अपने आसपास के वातावरण के बारे में अपने स्थानीय ज्ञान को विकसित करने की सुविधा दी जानी चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा यूथ एवं ईको क्लब की परिकल्पना करते हुए विद्यालयों को पर्यावरण स्थिरता हेतु स्थानीय ज्ञान, स्वास्थ्य पोषण, जलवायु और स्वच्छता के लिए जागरूकता को मजबूत करने हेतु समस्त विद्यालयों में यूथ एवं ईको क्लब चलाया जा रहा है।
इसी श्रंखला में प्रदेश के सभी प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों के समग्र विकास एवं पर्यावरण स्थिरता हेतु स्थानीय ज्ञान को मजबूत करने की दृष्टि से सत्र 2022-23 में समग्र विकास एवं पर्यावरण स्थिरता” की योजना प्रारम्भ की गयी है।
बजट- सत्र 2022-23 में स्टॉर प्रोजेक्ट के अन्तर्गत प्राथमिक शिक्षा के कक्षा 1 से 5 एवं उच्च प्राथमिक शिक्षा के कक्षा 1 से 8 श्रेणी के विद्यालयों के लिये गतिविधि स्वीकृत की गयी है। जिलेवार बजट परिशिष्ट – 01 पर अवलोकनीय एवं विद्यालय श्रेणीवार सकल बजट निम्नानुसार प्रावधित है –
Holistic development of children and strengthening local knowledge for environmental sustainability
S.No. | School Category | unit cost | No. of Schools | Financial in lac |
1 | PS School (1 to 5) | 0.050 | 33926 | 1696.300 |
2 | Upper Primary School (6-8 & 1-8 | 0.100 | 19169 | 1916.900 |
Total | 53095 | 3613.200 |
समग्र विकास और पर्यावरण स्थिरता के संदर्भ में-
- बच्चों के समग्र विकास हेतु कक्षाओं से परे जाने वाले पहलुओं को कवर करने हेतु समावेशी गतिविधियों के माध्यम से सीखने के अवसर प्रदान किए जाएंगे।
- पर्यावरण की सुरक्षा एवं इसे बनाये रखने हेतु विद्यार्थियों में लोक प्रथाओं और स्थानीय ज्ञान का होना आवश्यक है।
- विश्व पर्यावरण की थीम ‘ईको सिस्टम रेस्ट्रोशन रीइमेजिन अर्थात फिर से बनाना, पुर्नस्थापित करने की संकल्पना की क्रियान्विति हेतु राजस्थान के भौगोलिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए उष्ण शुष्क जलवायु में हरियाली को बनाये रखना, जल संरक्षण, वनों के संरक्षण एवं कचरा प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना अति आवश्यक है।
- जलवायु परिवर्तन एवं सकल पर्यावरण के सभी तत्वों पर कम से कम एक शिक्षक, जो पर्यावरण में रूचि एवं ज्ञान रखते हो को मैन्टोर के रूप में नियुक्त किया जायेगा।
2. संस्था प्रधान के दायित्व –
1. विद्यालय में निम्नलिखित पांच मापदण्डों को पूरा करने पर ध्यान दिया जायेगा –
A स्थानीय वातावरण एवं जैव-विविधता B जलवायु परिवर्तन C कचरा प्रबंधन
D पेयजल प्रबंधन E व्यक्तिगत और सामुदायिक स्वच्छता
2. यूथ और इको क्लबों के माध्यम से पूर्व में गठित कोर कमेटी / चाइल्ड कैबिनेट को एसएमसी के मार्गदर्शन में ‘समग्र विकास एवं पर्यावरण स्थिरता’ हेतु निर्धारित गतिविधियों को पूरा करने के लिए जिम्मेदार छात्र-छात्राओं को प्रतिनिधित्व के लिए सक्रिय और मजबूत बनाया जायेगा।
3. प्रत्येक स्कूल को गतिविधियों के दस्तावेजीकरण के लिए एक गतिविधि रजिस्टर बनाए रखने की आवश्यकता होगी। इस गतिविधि रजिस्टर में समस्त गतिविधियां, टाईम लाईन एवं विद्यार्थियों की भागीदारी संधारित की जायेगी।
A) स्थानीय वातावरण एवं जैव-विविधता –
क्षेत्र जैव-विविधता की गतिविधियां निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में आयोजित की जायेंगी –
S.No. | गतिविधि | किये जाने वाले मुख्यतः कार्य |
1 | कृषि जैव विविधता | फसल, पौधे, बागवानी, सब्जियां, फल, खरपतवार और कीट आदि। |
2 | पालतू जैव विविधता | घरेलू जानवर, जलीय |
3 | जंगली विविधता | औषधीय पौधे, इमारती लकड़ी के पौधे |
समुदाय के साथ समन्वय से छात्र अपने स्थानीय वातावरण में जैव-विविधता को समझने और समझाने के लिए कार्य योजना तैयार कर कार्य करेंगे और उसका विश्लेषण करेंगे। |
2. गतिविधियां :-
- छात्र-छात्रायें समुदाय के साथ बातचीत और शिक्षकों के मार्गदर्शन में स्थानीय जैव-विविधता को समझने के लिए समूह कार्य और परियोजनात्मक कार्य करेंगे।
- किये गये कार्यों के निष्कर्षों का विश्लेषण शिक्षक के मार्गदर्शन में किया जाएगा। प्राप्त निष्कर्षो / परिणामों पर समूह चर्चा कर संकलित विश्लेषण के आधार पर जैव-विविधता के पोस्टर विकसित किए जायेंगे।
B) जलवायु परिवर्तन :-
1. गतिविधियाँ-
- जलवायु परिवर्तन की समझ विकसित करने हेतु छात्र-छात्राएं जलवायु परिवर्तन के विभिन्न कारकों के बारे में जानेंगे एवं जलवायु परिवर्तन से पर्यावरण और स्थानीय परिवेश पर पड़ने वाले प्रभाव को समझेंगे।
- जलवायु परिवर्तन के बारे में विद्यार्थियों को समुह में चर्चा करवाते हुये अन्त में शिक्षक उनके साथ वार्ता कर विषय को स्पष्टता के साथ समझायेंगे, विद्यार्थियों के प्रश्नों जिज्ञासाओं का जवाब देंगे।
- विषय की आवश्यकता होने पर मल्टीमीडिया के माध्यम से समझाया जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करने हेतु छात्रों के अनुकूल जलवायु परिवर्तन पर आधारित फिल्मों का उपयोग लिया जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण समुदाय द्वारा महसूस की जाने वाली आजीविका और रोजमर्रा की दिनचर्या में बदलाव के बारे में जानने के लिए छात्रों द्वारा परियोजना कार्य किया जायेगा।
- ग्रीन हाउस गैसों का पर्यावरण एवं जलवायु पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव एवं कार्बन उत्सर्जन के बारे में समझाया जायेगा।
- जलवायु परिवर्तन पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों की शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों की समझ विकसित करते हुये विद्यार्थियों के लिये निम्नलिखित विषयों पर निबन्ध / पोस्टर प्रतियोगिता आयोजित की जा सकती है-
- जलवायु परिवर्तन अब चिंता का विषय क्यों है?
- मानव गतिविधि से कार्बनडाई ऑक्सीजन के उत्सर्जन एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले क्या-क्या प्रभाव हैं?
- जलवायु परिवर्तन में सूर्य की क्या भूमिका है?
- वैज्ञानिक कैसे जानते हैं कि हाल ही में जलवायु परिवर्तन काफी हद तक मानवीय गतिविधियों के कारण हुआ है?
C) कचरा प्रबंधन और स्वच्छ पर्यावरण –
कचरा प्रबंधन हेतु विद्यालय परिसर के कचरे को निस्तारित / उपयोगी बनाने के लिये विद्यार्थियों के साथ मिलकर गीले कचरे के लिये कम्पोस्ट गढ्ढों का निर्माण किया जाये विद्यार्थियों में कचरा निस्तारण एवं डस्टबिन के उपयोग हेतु समझ विकसित करने के लिये डस्टबिन का निम्नानुसार उपयोग लिया जाना सुनिश्चित करें-
1. नीले रंग के डस्टबिन का उपयोग विद्यालय के कॉमन भाग में सूखा डस्टबिन (नीले रंग का) रखें। इसमें – प्लास्टिक कवर, बोतलें, कागज बक्से, कप, टॉफी रैपर, साबुन या चॉकलेट रैपर और कागज के कचरे जैसे पत्रिकाएं, समाचार पत्र टेट्रा पैक, कार्डबोर्ड कार्टन कागज बॉक्स या पेपर कप, टिन / कैन फॉइल पेपर और कंटेनर जैसी धातु की वस्तुएं, सौंदर्य प्रसाधन, बाल, रबर/ थर्मोकोल (पॉलीस्टाइरीन), पुराने मोप्स / डस्टर/स्पंज इत्यादि शामिल हैं।
2. हरे रंग के डस्टबिन का उपयोग इसमें मुख्यतः गीला कचरा या बायोडिग्रेडेबल सामग्री शामिल है, के उपयोग में लिया जाये। इसमें पका हुआ भोजन / बचे हुए भोजन, सब्जी/फलों के छिलके, टी बैग / कॉफी पीस, नारियल के खोल और बगीचे के कचरे सहित गिरी हुई पत्तियों / टहनियाँ या पूजा के फूल माला इत्यादि शामिल हैं।
3. इसके अतिरिक्त प्रत्येक कक्षा-कक्ष में सामान्य रूप से छोटा डस्टबिन भी रखा जाये।
4. कम्पोस्ट पिट का निर्माण / उपयोग –
- स्कूलों को स्कूल परिसर के भीतर उत्पन्न गीले कचरे को स्वाभाविक रूप से निपटाने के लिए कंपोस्ट पिट स्थापित किया जायें। इन खाद गड्डों के प्रति विद्यार्थियों की उचित सुरक्षा सुनिश्चित करने के पश्चात उपयोग लिया जाये।
- कम्पोस्टिंग के जरिये बनी हुई खाद का उपयोग विद्यालय के किचन गार्डन / सब्जी के बाग़ में किया जा सकता है।
- स्कूल कचरा प्रबंधन के लिए आयोजित गतिविधियों में भागीदारी के माध्यम से छात्रों द्वारा बनाई गई वस्तुओं, चित्रों और निबंधों को प्रदर्शित किया जाये।
5- अनुपयोगी चीजों को उपयोगी बनाना –
- विद्यालयों में समस्त प्रकार की अनुपयोगी सामग्रियों को उपयोगी बनाने के लिये संस्था प्रधान शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के साथ सामुहिक कार्य योजना तैयार करेंगे।
- अनुपयोगी सामग्रियों को उपयोगी बनाने हेतु प्रथमतः विद्यार्थियों को निबन्ध प्रतियोगिता “बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट प्रतियोगिता आयोजित की जाये।
- इसी प्रकार पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया जाये, जिसमें (फोटो फ्रेम, पौधे के बर्तन, टिन के लालटेन, चित्रित कांच की बोतलें, कक्षाओं के लिए सजावटी सामग्री, प्लास्टिक चम्मच फूलदान, डिब्बों से पक्षी घर कुछ सुझाव हैं जो छात्र कर सकते हैं)। विजेताओं को प्रोत्साहन के रूप में पुरस्कार दिये जायें।
D) पेय जल संरक्षण और स्वच्छता-
गतिविधियां-
1. ‘स्वच्छ विद्यालय हरित विद्यालय’ के लिए जल संरक्षण हेतु वर्षा जल को एकत्रित करने की व्यवस्था की जाये। साथ ही स्कूल परिसर में अपशिष्ट जल का बेहतर प्रबंधन करते हुये इसे वृक्षारोपण के लिये उपयोगी बनाया जाये।
2. विद्यार्थियों को सदन आधारित क्लब (जल की गतिविधियों) के साथ जल संरक्षण हेतु त्वरित मूल्यांकन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाये ताकि उन कार्यों की पहचान की जा सके जो स्कूल परिसर में पेयजल आपूर्ति एवं अन्य उद्देश्यों के लिए पानी की आपूर्ति को मजबूत कर सकें।
3. इस कार्य सूची के अंतर्गत टूटे हुए पानी के नलों की मरम्मत, टपकते पानी के पाइप, जल भंडारण टैंकों की सफाई और वर्षा जल संचयन टैंक (यदि पहले से निर्मित हैं) व अन्य अति-आवश्यक कार्य किये जा सकते हैं।
4. विद्यालय द्वारा इस कार्य सूची के अंतर्गत नए अपशिष्ट जल चैनल, सोकपिट का निर्माण किया जा सकता है।
5. 22 मार्च को ‘विश्व जल दिवस’ के अवसर पर विद्यालय भूजल पर चित्रकला एवं निबंध लेखन प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए ‘ग्राउंडवाटर मेकिंग द इनविजिबल विजिबल’ विषय पर जल सम्बन्धी गतिविधियां एवं प्रतियोगितायें आयोजित की जायें, जिसमें जल के प्रभावी उपयोग और जल संरक्षण के तरीकों जैसे भूजल पुनर्भरण एवं संचयन इत्यादि विषय शामिल हों।
6. जिन विद्यालयों में पूर्व में वर्षा जल संचयन टैंक स्थापित हैं, ऐसे विद्यालयों की छत के परिक्षेत्र की गणना को ध्यान में रखते हुये विद्यार्थी टैंक में जल संचयन को नोट करेंगे ताकि वर्षा ऋतु के दौरान रेनवाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से टैंक में होने वाले संग्रहित पानी की क्षमता से विद्यार्थी परिचित हो सकें।
7. संग्रहित जल के अनुसार विद्यालय परिसर में विभिन्न गतिविधियों में उपयोग होने वाले पानी की मात्रा को विद्यार्थी तद्नुसार उपयोग ले सकें जिससे विद्यार्थी अपने दैनिक जीवन में भी पानी की उपयोगिता एवं जल संचयन के महत्व को समझ सकें।
गन्दे (अनुपयोगी) जल को उपयोगी बनाना –
- अनुपयोगी जल को उपयोगी बनाने हेतु योजना तैयार कर ऐसे पानी को वृक्षारोपण इत्यादि के लिये उपयोगी बनाया जाये।
- सोख्ता गड्डों का निर्माण -अपशिष्ट पानी को सोखते गड्डे में डालने की कार्य योजना विद्यार्थियों की सहभागिता से तैयार की जाये।
E) व्यक्तिगत और सामुदायिक स्वच्छता
1. व्यक्तिगत स्वच्छता-
● महत्व – स्वच्छता एक क्रिया है, जिससे बच्चे का शरीर, दिमाग, कपड़े, घर, स्कूल, आस-पास और कार्यक्षेत्र साफ व शुद्ध रहते हैं। मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिये साफ-सफाई बेहद जरूरी है अपने आसपास के क्षेत्र एवं पर्यावरण की सफाई सामाजिक एवं बौद्धिक स्वास्थ्य के लिये अति आवश्यक है। व्यक्तिगत स्वच्छता से शरीर स्वस्थ, सुडौल एवं मासपेशियां मजबूत रहती है। साथ ही रोग-प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि के साथ शरीर स्वस्थ, रोग मुक्त, ऊर्जावान एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
आयाम / क्षेत्र – स्वस्थ सफाई, सिर की सफाई, आँख, कान और नाक की सफाई मुँह की सफाई, त्वचा की सफाई, हाथ धोना, शौच के बाद सफाई, जननांगों की सफाई, खाद्य और रसोई की स्वच्छता, चिकित्सकीय स्वच्छता, त्वचा, बालो एवं नाखूनों की सफाई।
2. सामुदायिक स्वच्छता
- आवश्यकता- सामुदायिक स्वच्छता जीवन जीने की एक प्रक्रिया है। स्वच्छता से व्यवहार में सकारात्मक – परिवर्तन के साथ हम आसपास के वार्तावरण को स्वच्छ रखते हैं। किन्तु वर्तमान में यह हमारे व्यवहार में कम परिलक्षित होता है। परिणामस्वरूप आज हम अपनी पृथ्वी, वायु, जल, पर्यावरण एवं जीवन को विभिन्न रूपों में प्रदूषित करने वाले कूड़े के ढेर पर बैठे हैं, जो मानव जीवन के विभिन्न आयामों को दुष्प्रभावित कर रहे हैं। आज इस संवेदनशील मुद्दे पर विचार करना हमारी विवशता एवं प्राथमिकता बन गयी है।
- आयाम / क्षेत्र विद्यालय में शिक्षकों द्वारा प्रत्येक पाक्षिक स्तर पर विद्यालय परिक्षेत्र में विद्यार्थियों को 1 समुदाय के साथ चर्चा करवाते हुये स्वच्छता के महत्व एवं आवश्यकता से समुदाय को परिचय करवाने हेतु परिचर्चा आयोजित की जाये विद्यालय परिक्षेत्र में स्थापित सामुदायिक पेयजल केन्द्र, कुआँ, बावडी, मार्ग, मोहल्लों, बाजारों की साफ-सफाई के लिये समुदाय को साथ लेकर कार्य किया जाये।
मॉनिटरिंग- मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी एवं अति० जिला परियोजना समन्वयक एवं समस्त सीबीईओ अपने अधीनस्थ विद्यालयों की दिशा निर्देशानुसार समय-समय पर वित्तीय व्यय एवं गतिविधियों की मॉनीटरिंग एवं मार्गदर्शन प्रदान करेंगे।
राशि उपयोग हेतु निर्देश –
1. स्टार्स प्रोजेक्ट की वार्षिक कार्ययोजना एवं सत्र 2022-23 में Holistic development of children and strengthening local knowledge for environmental sustainability के अन्तर्गत डाइस 2020-21 के अनुसार कक्षा 1 से 5 की श्रेणी के कुल 33,926 राजकीय विद्यालयों के लिये 5,000/- रूपये एवं कक्षा 1 से 8 की श्रेणी के कुल 19.169 विद्यालयों के लिये प्रति विद्यालय 10,000/- रूपये की गणना से बजट का प्रावधान रखा गया है।
2. प्रावधित बजट से निर्धारित बजट सीमा से अधिक राशि का उपयोग नहीं किया जाये मद में प्रावधित राशि का उपयोग अन्य किसी गतिविधि में नहीं किया जाये।
3. प्रावधित बजट का उपयोग यथा हथौड़ी, फावड़ा, गैंती, खुरपी, खाद, बीज, नवीन पेड़-पौधे क्रय, पेड़-पौधों में पानी देने के उपकरण एवं विद्यालय की अनुपयोगी सामग्रियों को उपयोगी बनाने की सामग्री क्रय हेतु राशि का उपयोग लिया जा सकता है।
4. कचरा प्रबंधन एवं संभावित गतिविधि ( डस्टबिन, पिट कम्पोस्टिंग, वेस्ट सेग्रीगेशन / पृथक्करण) हेतु विद्यालय में वह सामग्री जो बच्चों को मद्देनज़र रखते हुए आवश्यक है, वह खरीद की जा सकती है।
5. प्रावधित राशि में से व्यय की गयी राशि का इन्द्राज विद्यालय के लेखों में किया जाये एवं बिल वाउचर संघारित किये जायें।
6. गतिविधियों हेतु उपलब्ध कराये गए बजट का सत्र 2022-23 में उपयोग किया जाकर निर्धारित समयाविधि में उपयोगिता प्रमाण पत्र (परिशिष्ट-02) ब्लॉक कार्यालय को प्रेषित किया जाना सुनिश्चित किया जाये।
7. सकल परिशिष्टानुसार विद्यालय / ब्लॉक से उपयोगिता प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकल रूप से जिला उपयोगिता प्रमाण पत्र परिषद कार्यालय को प्रेषित करें।
लेखा सम्बन्धी निर्देश –
- इस मद में निर्धारित बजट सीमा से अधिक व्यय नहीं किया जाये। निर्धारित सीमा से अधिक व्यय किये जाने पर संबंधित के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही की जाकर वसूली की जाएगी। क्रय हेतु वित्तीय नियमों का ध्यान रखा जाये।
- किये गये व्यय का निर्धारित समयावधि में उपयोगिता प्रमाण पत्र दिया जाकर समायोजन सुनिश्चित करवाया जाये।
- राशि का उपयोग गतिविधि च शिक्षा मंत्रालय के दिशा निर्देशानुसार एवं वित्तीय नियमों की पूर्ण पालना करते हुये विहित प्रक्रियानुसार किया जाना सुनिश्चित करें।
- क्रय की जाने वाली सामग्री में “राजस्थान लोक उपापन में पादरर्शिता अधिनियम 2012 एवं नियम 2013 की अक्षरशः पालना सुनिश्चित की जाये।