राज्य के अधीन विभिन्न सेवाओं/पदों पर नियुक्ति से पूर्व चरित्र/पुलिस सत्यापन के सम्बन्ध में विभिन्न सेवा नियमों में प्रावधान विद्यमान है इन प्रावधानों की सख्ती से पालना कराने के सम्बन्ध में कार्मिक विभाग द्वारा समय समय पर विभिन्न परिपत्र जारी किये हुए है किन्तु किन परिस्थितियों में अभ्यर्थियों को नियुक्ति हेतु अपात्र माना जायेगा एवं किन स्थितियों में पात्र, इस सम्बन्ध में कुछ स्थितियों के सम्बन्ध में अस्पश्टता होने के कारण नियुक्ति अधिकारियों के समक्ष यह दुविधा उत्पन्न हो जाती है कि वे आपराधिक प्रकरणों का रिकाॅर्ड सामने आने पर अभ्यर्थी विशेष को नियुक्ति का पात्र मानें अथवा नहीं मानें/ यद्यपि यह सामनचे आया है कि इस समबन्ध में गृह विभा/पुलिस मुख्यालय द्वारा चरित्र सत्यापन करने वाले पुलिस अधिकारियों के मार्गदर्शनार्थ कुछ परिपत्र जारी किये गये है, किन्तु वे सभ नियुक्ति अधिकारियों का समान रूप से मार्गदर्शन नहीं करते है । अतः शासन में सभी स्तरों पर एकरूपता बनाए रखने के हित में, इस विषय में जारी तत्सम्बन्धी सभी परिपत्रों/निर्देशों के अधिक्रमण में कार्मिक विभाग राजस्थान सरकार, जयपुर द्वारा परिपत्र क्रमांक-पं.1(1)कार्मिक/क-2/2016 दिनांक-04.12.2019 द्वारा दिशा निर्देश जारी किये गये है ।

इस सम्बन्ध में प्रकरण माननीय सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचने पर माननीय न्यायालय द्वारा दिल्ली प्रशासन बनाम सुशील कुमार में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया हुआ है कि ‘सेवा में नियुक्ति प्रदान करते समय अभ्यर्थी का चरित्र एवं पूर्व आचरण महत्वपूर्ण है। अपराधिक प्रकरण में दोशसिद्धि अथवा दोषमुक्ति अर्थात वास्तविक परिणाम इतना सुसंगत नहीं है जितना की अभ्यर्थी का आचरण एवं चरित्र।’
सेवा नियमों की अपेक्षा यह है कि किसी अभ्यर्थी को नियुक्ति दिये जाने या न दिये जाने के सम्बन्ध में नियुक्ति प्राधिकारी को प्रत्येक प्रकरण के तथ्यों, परिस्थितियों एवं जिस पद पर नियुक्ति दी जानी है उस पद के कार्य की प्रकृति एवं गरिमा के अनुसार गुणावगुण पर निर्णय लेना चाहिये। पूर्व आचरण के आधार पर किसी भी अभ्यर्थी को नियुक्ति के योग्य या अयोग्य पाने का निर्ण करते समय नियुक्ति प्राधीकारी को प्रत्येक प्रकरण में अपराध की परिस्थितियों को भी ध्यान रख कर अभ्यर्थी के आचरण का अंकलन करना चाहिये।
उक्तानुसार यह निर्विवाद है कि किसी अभ्यर्थी को नियुक्ति दिये जाने/ नहीं दिये जाने का निर्णय अन्तिम रूप से नियुक्ति प्राधिकारी को ही, सुसंगत सेवा नियमों को ध्यान में रखते हुए, गुणावगुण के आधार पर लेना होगा। तथापि कुछ प्रकरण ऐसी प्रकृति के होंगे जिनमें स्पष्टतः यह माना जा सकता है कि अभ्यर्थी नियुक्ति हेतु पात्र नहीं है जबकि अन्य कुछ ऐसे प्रकरण भी होंगे जिनमें नियुक्ति से वंचित किया जाना किसी भी दृष्टि से उचित/न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता। अतः नियुक्ति अधिकारियों के सामान्य मार्गदर्शनार्थ निर्देशन के रूप में ऐसी प्रकृति के प्रकरणों को उक्त परिपत्र में निम्नानुसार लेखबद्ध किया गया हैः-

ऐसे प्रकरण/स्थितियां जिनमें नियुक्ति हेतु अपात्रता मानी जानी चाहिये

यदि किसी भी अभ्यर्थी के विरूद्ध निम्न में से किसी भी प्रकार के अपराध के तहत प्रकरण अन्वेक्षणाधीन/न्यायालय में विचाराधीन है अथवा दोषसिद्धि उपरान्त सजा हो चुकी है, तो उसे राज्य के अधीन सेवाओं/पदों हेतु पात्र नहीं माना जाना चाहिये-

  • नैतिक अधमता यथा छल, कूटरचना, मत्तता, बलात्संग, किसी महिला की लज्जा भंग करने के अपराध में अन्तर्वलिततता (involvement) हो।
  • स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अवैध व्यापार निवारण अधिनियम 1988 (1988 का अधिनियम संख्या 26) में यथा परिभाषित अवैध व्यापार में अन्तर्वलितता हो।
  • अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 (1956 का केन्द्रीय अधिनियम संख्या 104) में यथापरिभाषित अनैतिक दुव्र्यापार में अन्तर्वलिततता हो।
  • नियोजित हिंसा या राज्य के विरूद्ध ऐसे किसी अपराध में अन्तर्वलितता हो, जो भारतीय दण्ड संहिता 1860 (1860 का केन्द्रीय अधिनियम संख्या 45) के अध्याय 6 में वर्णित है।
  • भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 16 एवं 17 में यथावर्णित अपराधों में अन्तर्वलितता हो।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 147, 148 (बलवा करना) के अपराध में अंतर्वलितता हो।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498 A (स्त्रियो के प्रति आपराधिक दुर्व्यवहार दहेज) के अपराध में अंतर्वलिततता हो।
  • अजा/अजजा अधिनियम, 1989 के तहत अपराध में अंतर्वलितता हो।
  • लैंगिक अपराधें से बालकों का संरक्षण अधिनियम (पोक्सो), 2012 के तहत अपराध में अन्तर्वलिततता (Involvement) हो।
    यहां यह भी स्पष्ट किया जाता है कि उक्त प्रकार के अपराधों से सम्बन्धित कोई भी सूचना जानबूझकार छिपाने वाले अभ्यर्थियों को भी नियुक्ति हेतु अपात्र माना जायेगा।
ऐसे प्रकरण/स्थितियां जिनमें अभ्यर्थी को नियुक्ति हेतु पात्र माना जाना चाहिये
  • जिन अभ्यर्थियों को आपराधिक प्रकरण में अन्वेषण में दोषी नहीं पाया गया हो तथा सम्बन्धित भर्ती में परीक्षा परिणाम जारी होने के एक वर्ष के भतर अन्वेषणोपरान्त एफ आर न्यायालय में प्रस्तुत की जा चुकी हो।
  • दोषमुक्ति के मामलों में विभाग में इस सम्बन्ध में गठित समिति जिसमें एक पुलिस अधिकारी भी सदस्य होगा, अभ्यर्थी के पूर्ववृत आरोपों की गहनता एवं दोषमुक्ति का आधार, अर्थात क्या दोषमुक्ति सम्मानजनक रूप से प्रदान की गयी है अथवा संदेह के लाभ/समझौते के आधार पर प्रदान की गयी है, आदि का समुचित परीक्षण कर, अभ्यर्थी को नियुक्ति देने के सम्बन्ध में निर्णय लेगी।
  • अभ्यर्थियों के ऐसे प्रकरण जिनमें न्यायालय द्वारा परिवीक्षा अधिनियम की धारा 12 कर लाभ दिया जाकर परिवीक्षा पर छोडा गया हो।(दोषसिद्धि किसी निरर्हता से ग्रस्त नहीं/राजकीय सेवा/भावी जीवन पर किसी प्रकार का विपरीत प्रभाव नहीं)।
    4.अभ्यर्थियों के ऐसे प्रकरण जिनमें दोषी करार दिया जाकर किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2005 की धारा 24 (i) का लाभ प्रदान किया गया हो।

समस्त नियोक्ता अधिकारीगण से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अभ्यर्थियों के चरित्र/पुलिस सत्यापन के सम्बन्ध में नियुक्ति के समय सम्बन्धित सेवा नियमों के प्रावधानों एवं इन दिशा-निर्देशों के प्रावधानों को दृष्टिगत रखते हुए समुचित निर्णय लेंगे ।