सेवानिवृत्ति/ मृत्यु उपदान से आशय सेवानिवृत्त कर्मचारी को या सेवा के दौरान मृत्यु को प्राप्त कर्मचारी के परिवार को देय नियमानुसार एकमुश्त भुगतान से है जो निहित प्रावधानों के तहत देय होता है । उपरोक्त प्रकार के दोनों मामलों में देय राशि की अधिकतम सीमा दिनांक 31.12.2006 तक रू. 3.50 लाख तथा दिनांक 1.1.2007 से 31.12.2015 तक रू. 10.00 लाख रही। 1.1.2016 से इस राशि की अधिकतम सीमा 20.00 लाख की गयी है (नकद देयता 1.1.2017 से की गयी है) ।

उपदान हेतु परिलब्धियों की गणना के लिए इस पुस्तिका के प्रथम अध्याय में अंकित पेंशन गणना हेतु निर्धारित परिलब्धियों के अलावा पेंशन परिलब्धियों में सेवानिवृत्ति/ मृत्यु दिनांक को देय मंहगाई भत्ते को भी सेवानिवृत्ति उपदान / मृत्यु उपदान के प्रयोजनार्थ परिलब्धियों का भाग माना गया है।

सेवा निवृत्ति उपदान एवं मृत्यु उपदान दोनों की गणना करने के लिए नियमों में अलग अलग प्रावधान हैं जिसका विवरण निम्नानुसार है:-

(क) सेवा निवृत्ति के मामले में लागू प्रावधान

उपरोक्त सम्बन्धित मामलों में निम्न शर्ते पूर्ण करने पर सेवा निवृत्त कर्मचारी को उपदान राशि की देयता बनती है

1. सरकारी कर्मचारी ने नियमानुसार 5 वर्ष की सेवा पूर्ण कर ली हो।

2. सरकारी कर्मचारी सेवा उपदान (Service Gratuity) प्राप्त करने का पात्र हो गया हो।

3. उपरोक्त शर्तों के अधीन पेंशन योग्य ( अर्हकारी) सेवा के प्रत्येक छह माह के खण्ड (अवधि) के लिए परिलब्धियों की एक-चौथाई के बराबर उपदान राशि देय है किन्तु कुल देय उपदान राशि परिलब्धियों के (साढ़े सोलह गुनी) से अधिक नहीं होगी।

उदाहरणार्थ यदि किसी कर्मचारी का सेवा निवृत्ति पर वेतन (मंहगाई भत्ता सहित) 80,200 प्रतिमाह है तथा 15 वर्ष की पेंशन योग्य सेवा पुर्ण की है तो 15 वर्ष के छह माह के खण्ड बनाने पर 30 खण्ड होते हैं के आधार पर प्रत्येक खण्ड के लिए परिलब्धियों के एक-चौथाई के बराबर राशि अर्थात् र 20,050 देय होने पर कुल 20,050 x30-6,01,500 की राशि देय होगी। अतः उपदान राशि गणना का फामूला निम्नानुसार है :

    परिलब्धियाँ X पूरे किये गये 6 माह के खण्ड = देय उपदान राशि
                    4

(ख) सेवा के दौरान मृत्यु के मामले में लागू प्रावधान-

उक्त मामले में देयता को दो भागों में बांटा जा सकता है :
(i) उपदान राशि की गणना विधि
(ii) उपदान राशि के भुगतान हेतु पात्रता का निर्धारण

(i) उपदान राशि की गणना विधि

कर्मचारी के परिवार को निम्न विवरण के अनुसार मृत्यु उपदान राशि देय होने का प्रावधान है :-

क्र. सं.पूर्ण की गई पेंशन योग्य (अर्हकारी) सेवा की अवधिमृत्यु उपदान राशि की दर
1एक वर्ष से कममासिक परिलब्धियों का दो गुना
2एक वर्ष या अधिक किन्तु पांच वर्ष से कममासिक परिलब्धियों का छः गुना
3पांच वर्ष या अधिक किन्तु 11 वर्ष से कममासिक परिलब्धियों का 12 गुना
411 वर्ष या अधिक किन्तु 20 वर्ष से कममासिक परिलब्धियों का 20 गुना
520 वर्ष या अधिकपेंशन योग्य सेवा के पूर्ण किये गये प्रत्येक छ: माह के खण्ड के लिए
आधे मास की परिलब्धियों के बराबर राशि देय होगी किन्तु देय राशि
परिलब्धियों के 33 गुणा से अधिक नहीं होगी परन्तु यह राशि
रु. 20.00 लाख से अधिक नहीं होगी ।

(ii) पात्रता का निर्धारण (नियम -56)

पात्रता का निम्न प्रकार से निर्धारण किया जाता है।

1. यदि कर्मचारी के द्वारा मृत्यु के पूर्व मृत्यु उपदान की प्राप्ति के लिए किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को मनोनीत किया हुआ है तो मनोनयन पत्र के अनुसार भुगतान की कार्यवाही की जायेगी। यहां यह उल्लेखनीय है कि यदि किसी राज्य कर्मचारी के परिवार है तो वह परिवार के सदस्यों के अलावा किसी अन्य के नाम का मनोनयन पत्र नहीं दे सकेगा ।

2. यदि कर्मचारी द्वारा मृत्यु से पूर्व उपरोक्त सम्बन्ध में कोई मनोनयन पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया हो तो उपदान राशि वर्ग 1 में दिये गये परिवार के सदस्यों के बराबर-बराबर बांटी जायेगी जिसका विवरण निम्नानुसार है: (नियम -55(4))

वर्ग संख्या – 1

अ. मृतक कर्मचारी की पत्नी (पुरूष कर्मचारी के मामलों में)
ब. मृतक राज्य कर्मचारी का पति ( महिला कर्मचारी के मामले में)
स. मृतक कर्मचारी के समस्त पुत्र
द. मृतक कर्मचारी की समस्त अविवाहित पुत्रियां

यदि उपरोक्त वर्ग संख्या 1 का कोई भी पारिवारिक सदस्य जीवित न हो तो निम्न विवरण के अनुसार वर्ग संख्या 2 के सदस्यों में राशि बराबर-बराबर बांटी जायेगी :

वर्ग संख्या – 2

  1. विधवा पुत्रियां
  2. पिता
  3. माता
  4. 18 वर्ष से कम आयु का भाई
  5. अविवाहित या विधवा बहन
  6. विवाहित पुत्रियां
  7. पूर्व मृत पुत्र के बच्चे

अवयस्क सदस्य को भुगतान की प्रक्रिया : यदि भुगतान अवयस्क सदस्य को अधिकृत किया जाता है तो भुगतान प्राकृतिक संरक्षक (माता/ पिता) के माध्यम से किया जा सकता है। इसके अभाव में तथा जहां प्राप्तकर्ता मुस्लिम हो तो भुगतान कानूनी संरक्षक के माध्यम से ही किये जाने का प्रावधान है।