उतरो तम पथ पर ज्योति,
चरण उतरो उतरो उतरो।
पद चिह्न बने नखतावलियाँ,
झूमे दिशि दिशि दीपावलियाँ।
जन शुभ युग मंगल किरणों की,
छवि मांग रहा तुमसे कण कण।
उतरो उतरो उतरो……………………।
अवनी अम्बर के अधर मिले,
मानव संस्कृति के सुमन खिले।
जन मानस की लहरी करले,
पावन ज्योत्स्ना का पुण्य वरण।
उतरो उतरो उतरो……………………।
तुम छिपे यहीं यमुना तट पर,
मोहन भरते मुरली का स्वर।
दो नवल रश्मि जग को जिससे,
अणु अणु आलोकित हो क्षण-क्षण।
उतरो उतरो उतरो……………………।