प्रेरक प्रसंग

🏆🏆🏆🏆🏆🏆🏆🏆🏆🏆

प्रेरक प्रसंग

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

➖➖➖➖➖

हफीज अफ्रीका का एक किसान था। वह अपनी जिंदगी से खुश और संतुष्ट था। हफीज खुश इसलिए था कि वह संतुष्ट था। वह संतुष्ट इसलिए था क्योंकि वह खुश था। एक दिन एक अक्लमंद आदमी उसके पास आया। उसने हफीज से कहा, ‘अगर तुम्हारे पास अंगूठे जितना बड़ा हीरा हो, तो तुम पूरा शहर खरीद सकते हो, और अगर तुम्हारे पास मुट्ठी जितना बड़ा हीरा हो तो तुम अपने लिए शायद पूरा देश ही खरीद लो।‘ वह अक्लमंद आदमी इतना कह कर चला गया। उस रात हफीज सो नहीं सका। वह असंतुष्ट हो चुका था, इसलिए उसकी खुशी भी खत्म हो चुकी थी।

दूसरे दिन सुबह होते ही हफीज ने अपने खेतों को बेचने और अपने परिवार की देखभाल का इंतजाम किया, और हीरे खोजने के लिए रवाना हो गया। वह हीरों की खोज में पूरे अफ्रीका में भटकता रहा, पर उन्हें पा नहीं सका। उसने उन्हें यूरोप में भी दूंढ़ा, पर वे उसे वहां भी नहीं मिले। स्पेन पहुंचते-पहुंचते वह मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्तर पर पूरी तरह टूट चुका था। वह इतना मायूस हो चुका था कि उसने बार्सिलोना नदी में कूद कर खुदखुशी कर ली।

इधर जिस आदमी ने हफीज के खेत खरीदे थे, वह एक दिन उन खेतों से होकर बहने वाले नाले में अपने ऊंटों को पानी पिला रहा था। तभी सुबह के वक्त उग रहे सूरज की किरणें नाले के दूसरी और पड़े एक पत्थर पर पड़ी, और वह इंद्रधनुष की तरह जगमगा उठा। यह सोच कर कि वह पत्थर उसकी बैठक में अच्छा दिखेगा, उसने उसे उठा कर अपनी बैठक में सजा दिया। उसी दिन दोपहर में हफीज को हीरों के बारे में बताने वाला आदमी खेतों के इस नए मालिक के पास आया। उसने उस जगमगाते हुए पत्थर को देख कर पूछा, ‘क्या हफीज लौट आया?‘ नए मालिक ने जवाब दिया, ‘नहीं, लेकिन आपने यह सवाल क्यों पूछा?‘ अक्लमंद आदमी ने जवाब दिया, ‘क्योंकि यह हीरा है। मैं उन्हें देखते ही पहचान जाता हूं।‘ नए मालिक ने कहा, ‘नहीं, यह तो महज एक पत्थर है। मैंने इसे पाले के पास से उठाया है। आइए, मैं आपको दिखता हूं। वहां पर ऐसे बहुत सारे पत्थर पड़े हुए हैं। उन्होंने वहां से नमूने के तौर पर बहुत सारे पत्थर उठाए, और उन्हें जांचन-परखने के लिए भेज दिया। वे पत्थर हीरे ही साबित हुए। उन्होंने पाया कि उस खेत में दूर-दूर तक हीरे दबे हुए थे।

इससे हमें सीख मिलते हैं-

जब हमारा नजरिया सही होता है, तो हमें महसूस होता है कि हम हीरों से भरी हुई जमीन पर चल रहे हैं। मौके हमेशा हमारे पावों तले दबे हुए हैं। हमें उनकी तलाश में कहीं जाने की जरूरत नहीं है। हमें केवल उनको पहचान लेना है।

दूसरे के खेत की घास हमेंशा हरी लगती है।

जिन्हें मौके की पहचान नहीं होती, उन्हें मौके का खटखटाना शोर लगता है।

                                                🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

एक जंगल में पक्षियों के राजा गरूड़ रहते थे। एक दिन पक्षियों ने सभा बुलाई। अपने नेता के बारे में चर्चा करने लगे। एक तोता बोला, “गरूड़ को अपना राजा बनाने का क्या लाभ? वह तो सदा वासुदेव की भक्ति में लगा रहता है, मुश्किल में हमारी मदद भी नहीं कर पाएगा।”

उसकी बात से सभी पक्षी सहमत हो गए और उन्होंने नया राजा चुनने का विचार किया। सर्वसम्मति से उल्लू को राजा चुना गया।

अभिषेक की तैयारियाँ होने लगी। ज्यों ही उल्लूकराज राजसिंहासन पर बैठने वाले थे त्यों ही कहीं से एक कौआ आकर बोला, “तुम सब क्यों यहाँ इकट्ठे हो? यह कैसा समारोह है?”

कौए को देखकर सभी आश्चर्य में पड़ गए। उसे तो किसी ने बुलाया ही नहीं था। पर कौआ सबसे चतुर कूटराजनीतिज्ञ पक्षी है, ऐसा उन्हें पता था इसलिए सभी कौए के चारों ओर इकट्ठे होकर मंत्रणा करने लगे।

उलूकराज के राज्याभिषेक की बात सुनकर कौए ने हंसते हुए कहा, “मूर्ख पक्षियों! इतने सारे सुंदर पक्षियों के होते हुए दिवांध और टेढ़ी नाक वाले बदसूरत उल्लू को तुम सब ने राजा बनाने का कैसे विचार किया? वह स्वभाव से ही रौद्र और कटुभाषी है। एक राजा के होते हुए दूसरे को राजा बनाना विनाश को निमंत्रण देना है।” किसी दूसरे दिन, किसी दूसरे पक्षी को अपने नेता के रूप में चुना जाएगा ऐसा निर्णय कर सभी पक्षी अपने घर चले गए। दिन का समय था। उल्लू अकेला रह गया क्योंकि दिन में उसे दिखता ही नहीं है। एक दूसरे उल्लू ने धीरे से उल्लू के कान में फुसफुसाकर कहा, “महाराज, कौए ने आपके राज्याभिषेक में खलल डाली है, सभी पक्षी घर चले गए हैं।”

चिढ़े हुए उल्लू ने कौए से कहा, “क्यों रे दुष्ट! तुम्हारे कारण मैं राजा न बन सका। आज से तेरा मेरा वंशपरंपरागत बैर रहेगा।”

इस प्रकार कौए और उल्लू में हमेशा के लिए दुश्मनी हो गइ।

उल्लू और सभी पक्षियों के जाने के पश्चात् कौए ने मन में विचारा कि व्यर्थ में उल्लू को अपना बैरी बना लिया।

यही सोचता हुए कौआ भी अपने घर चला गया। पर तभी से कौवों और उल्लुओं में स्वाभाविक बैर चला आ रहा है।

शिक्षा : बोलने से पहले विचार अवश्य करना चाहिए

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??

यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।

वह जोर से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।

ये उल्लू चिल्ला रहा है।

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??

ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।

सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।

हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा

पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।

हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??

अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!

उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये।

कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी।

पंचलोग भी आ गये!

बोले- भाई किस बात का विवाद है ??

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।

हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है।

इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए!

फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।

उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई – ऐ मित्र हंस, रुको!

हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ??

पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?

उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी!

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!

मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।

यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!

शायद 65 साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता न देखते हुए, हमेशा ये हमारी जाति का है. ये हमारी पार्टी का है के आधार पर अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

एक शख्स गाड़ी से उतरा .. और बड़ी तेज़ी से एयरपोर्ट मे घुसा , जहाज़ उड़ने के लिए तैयार था , उसे किसी कांफ्रेंस मे पहुंचना था जो खास उसी के लिए आयोजित की जा रही थी …..
वह अपनी सीट पर बैठा और जहाज़ उड़ गया … अभी कुछ दूर ही जहाज़ उड़ा था कि …. कैप्टन ने ऐलान किया , तूफानी बारिश और बिजली की वजह से जहाज़ का रेडियो सिस्टम ठीक से काम नही कर रहा …. इसलिए हम क़रीबी एयरपोर्ट पर उतरने के लिए मजबूर हैं।
जहाज़ उतरा वह बाहर निकल कर कैप्टन से शिकायत करने लगा कि…..उसका एक – एक मिनट क़ीमती है और होने वाली कांफ्रेस मे उसका पहुचना बहुत ज़रूरी है …. पास खड़े दूसरे मुसाफिर ने उसे पहचान लिया …. और बोला डॉक्टर पटनायक आप जहां पहुंचना चाहते हैं ….. टैक्सी द्वारा यहां से केवल तीन घंटे मे पहुंच सकते हैं ….. उसने शुक्रिया अदा किया और टैक्सी लेकर निकल पड़ा …

लेकिन ये क्या आंधी , तूफान , बिजली , बारिश ने गाड़ी का चलना मुश्किल कर दिया , फिर भी ड्राइवर चलता रहा …
अचानक ड्राइवर को एह़सास हुआ कि वह रास्ता भटक चुका है …
ना उम्मीदी के उतार चढ़ाव के बीच उसे एक छोटा सा घर दिखा …. इस तूफान मे वही ग़नीमत समझ कर गाड़ी से नीचे उतरा और दरवाज़ा खटखटाया ….
आवाज़ आई …. जो कोई भी है अंदर आ जाए .. दरवाज़ा खुला है …

अंदर एक बुढ़िया आसन बिछाए भगवद् गीता पढ़ रही थी … उसने कहा!! मांजी अगर इजाज़त हो तो आपका फोन इस्तेमाल कर लूं …

बुढ़िया मुस्कुराई और बोली ….. बेटा कौन सा फोन ?? यहां ना बिजली है ना फोन ..
लेकिन तुम बैठो .. सामने चरणामृत है , पी लो….थकान दूर हो जायेगी .. और खाने के लिए भी कुछ ना कुछ फल मिल जायेगा ….. खा लो!! ताकि आगे सफर के लिए कुछ शक्ति आ जाये …

डाक्टर ने शुक्रिया अदा किया और चरणामृत पीने लगा …. बुढ़िया अपने पाठ मे खोई थी कि उसकेे पास उसकी नज़र पड़ी …. एक बच्चा कंबल मे लपेटा पड़ा था जिसे बुढ़िया थोड़ी थोड़ी देर मे हिला देती थी …
बुढ़िया फारिग़ हुई तो उसने कहा …. मांजी!! आपके स्वभाव और एह़सान ने मुझ पर जादू कर दिया है …. आप मेरे लिए भी दुआ कर दीजिए …. यह मौसम साफ हो जाये मुझे उम्मीद है आपकी दुआऐं ज़रूर क़बूल होती होंगी …

बुढ़िया बोली …. नही बेटा ऐसी कोई बात नही … तुम मेरे अतिथी हो और अतिथी की सेवा ईश्वर का आदेश है …. मैने तुम्हारे लिए भी दुआ की है …. परमात्मा का शुक्र है …. उसने मेरी हर दुआ सुनी है..
बस एक दुआ और मै उससे माँग रही हूँ शायद जब वह चाहेगा उसे भी क़बूल कर लेगा …

कौन सी दुआ ..?? डाक्टर बोला …

बुढ़िया बोली … ये जो 2 साल का बच्चा तुम्हारे सामने अधमरा पड़ा है , मेरा पोता है , ना इसकी मां ज़िंदा है ना ही बाप , इस बुढ़ापे मे इसकी ज़िम्मेदारी मुझ पर है , डाक्टर कहते हैं … इसे कोई खतरनाक रोग है जिसका वो इलाज नही कर सकते , कहते हैं एक ही नामवर डाक्टर है , क्या नाम बताया था उसका !
हां ” डॉ पटनायक ” …. वह इसका ऑप्रेशन कर सकता है , लेकिन मैं बुढ़िया कहां उस डॉ तक पहुंच सकती हूं ? लेकर जाऊं भी तो पता नही वह देखने पर राज़ी भी हो या नही ? बस अब बंसीवाले से ये ही माँग रही थी कि वह मेरी मुश्किल आसान कर दे..!!

डाक्टर की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा है …. वह भर्राई हुई आवाज़ मे बोला!!
माई … आपकी दुआ ने हवाई जहाज़ को नीचे उतार लिया , आसमान पर बिजलियां कौदवां दीं , मुझे रस्ता भुलवा दिया , ताकि मैं यहां तक खींचा चला आऊं , हे भगवान!! मुझे यकीन ही नही हो रहा …. कि परमात्मा एक दुआ क़बूल करके अपने भक्तौं के लिए इस तरह भी मदद कर सकता है…..!!!!

दोस्तों वह सर्वशक्तीमान है….परमात्मा के बंदो उससे लौ लगाकर तो देखो … जहां जाकर इंसान बेबस हो जाता है , वहां से उसकी परमकृपा शुरू होती है।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

भील बालिका कालीबाई का बलिदान

15 अगस्त 1947 से पूर्व भारत में अंग्रेजों का शासन था। उनकी शह पर अनेक राजे-रजवाड़े भी अपने क्षेत्र की जनता का दमन करते रहते थे। फिर भी स्वाधीनता की ललक सब ओर विद्यमान थी, जो समय-समय पर प्रकट भी होती रहती थी।

राजस्थान की एक रियासत डूंगरपुर के महारावल चाहते थे कि उनके राज्य में शिक्षा का प्रसार न हो। क्योंकि शिक्षित होकर व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जाता था; लेकिन अनेक शिक्षक अपनी जान पर खेलकर विद्यालय चलाते थे। ऐसे ही एक अध्यापक थे सेंगाभाई, जो रास्तापाल गांव में पाठशाला चला रहे थे।

इस सारे क्षेत्र में महाराणा प्रताप के वीर अनुयायी भील बसते थे। विद्यालय के लिए नानाभाई खांट ने अपना भवन दिया था। इससे महारावल नाराज रहते थे। उन्होंने कई बार अपने सैनिक भेजकर नानाभाई और सेंगाभाई को विद्यालय बन्द करने के लिए कहा; पर स्वतंत्रता और शिक्षा के प्रेमी ये दोनों महापुरुष अपने विचारों पर दृढ़ रहे।

यह घटना 19 जून, 1947 की है। डूंगरपुर का एक पुलिस अधिकारी कुछ जवानों के साथ रास्तापाल आ पहुंचा। उसने अंतिम बार नानाभाई और सेंगाभाई को चेतावनी दी; पर जब वे नहीं माने, तो उसने बेंत और बंदूक की बट से उनकी पिटाई शुरू कर दी। दोनों मार खाते रहे; पर विद्यालय बंद करने पर राजी नहीं हुए। नानाभाई का वृद्ध शरीर इतनी मार नहीं सह सका और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये। इतने पर भी पुलिस अधिकारी का क्रोध शांत नहीं हुआ। उसने सेंगाभाई को अपने ट्रक के पीछे रस्सी से बांध दिया।

उस समय वहां गांव के भी अनेक लोग उपस्थित थे; पर डर के मारे किसी का बोलने का साहस नहीं हो रही था। उसी समय एक 12 वर्षीय भील बालिका कालीबाई वहां आ पहुंची। वह साहसी बालिका उसी विद्यालय में पढ़ती थी। इस समय वह जंगल से अपने पशुओं के लिए घास काट कर ला रही थी। उसके हाथ में तेज धार वाला हंसिया चमक रहा था। उसने जब नानाभाई और सेंगाभाई को इस दशा में देखा, तो वह रुक गयी।

उसने पुलिस अधिकारी से पूछा कि इन दोनों को किस कारण पकड़ा गया है। पुलिस अधिकारी पहले तो चुप रहा; पर जब कालीबाई ने बार-बार पूछा, तो उसने बता दिया कि महारावल के आदेश के विरुद्ध विद्यालय चलाने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है। कालीबाई ने कहा कि विद्यालय चलाना अपराध नहीं है। गोविन्द गुरुजी के आह्नान पर हर गांव में विद्यालय खोले जा रहे हैं। वे कहते हैं कि शिक्षा ही हमारे विकास की कुंजी है।

पुलिस अधिकारी ने उसे इस प्रकार बोलते देख बौखला गया। उसने कहा कि विद्यालय चलाने वाले को गोली मार दी जाएगी। कालीबाई ने कहा,तो सबसे पहले मुझे गोली मारो। इस वार्तालाप से गांव वाले भी उत्साहित होकर महारावल के विरुद्ध नारे लगाने लगे। इस पर पुलिस अधिकारी ने ट्रक चलाने का आदेश दिया। रस्सी से बंधे सेंगाभाई कराहते हुए घिसटने लगे। यह देखकर कालीबाई आवेश में आ गयी। उसने हंसिये के एक ही वार से रस्सी काट दी।

पुलिस अधिकारी के क्रोध का ठिकाना न रहा। उसने अपनी पिस्तौल निकाली और कालीबाई पर गोली चला दी। इस पर गांव वालों ने पथराव शुरू कर दिया, जिससे डरकर पुलिस वाले भाग गये। इस प्रकार कालीबाई के बलिदान से सेंगाभाई के प्राण बच गये। इसके बाद पुलिस वालों का उस क्षेत्र में आने का साहस नहीं हुआ। कुछ ही दिन बाद देश स्वतंत्र हो गया। आज डूंगरपुर और सम्पूर्ण राजस्थान में शिक्षा की जो ज्योति जल रही है। उसमें कालीबाई और नानाभाई जैसे बलिदानियों का योगदान अविस्मरणीय है।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

भीखू हलवाई का बेटा बच्चू एकदम मनमौजी था। मन है तो काम कर लिया नहीं है तो पड़ा रहने दो……..हो जाएगा जब होना होगा।

एक दिन उसने दुकान से एक दौना भरकर जलेबियाँ लीं। वह गाँव के बाहर जानेवाली सड़क के किनारे बैठ गया और जलेबियाँ खाने लगा।

तभी वहाँ एक थका-माँदा यात्री आया। वह बच्चू से बोला, ‘भैया बड़ी दूर से चलकर आ रहा हूँ। बड़ी भूख लगी है, क्या यहाँ कुछ अच्छा खाने को मिलेगा?’

बच्चू ने उसे एक जलेबी दी और कहा, ‘ये लो भैया, जलेबी खाओ और यदि तुम्हें ज़्यादा चाहिए तो भीखू हलवाई की दुकान पर चले जाओ। सब कुछ खाने को मिलेगा।’

यात्री ने देखा कि वहाँ पर दो सड़कें थीं। उसने बच्चे से पूछा, ‘अच्छा भैया, यह बताओ कि भीखू हलवाई के यहाँ इनमें से कौन-सी सड़क जाती है?’

यह बात सुनकर जैसे बच्चू को बड़ी तसल्ली मिली। वह हँसकर बोला, ‘ए भाई, तुम तो मुझसे भी ज़्यादा आलसी निकले। मेरे बाबा हमेशा कहते थे कि मुझसे ज़्यादा आलसी इंसान हो ही नहीं सकता। लेकिन अब मैं उन्हें बताऊँगा कि उनकी बात ग़लत थी।’

यात्री को समझ में नहीं आ रहा था कि मामला क्या है। उसने तो बस रास्ता ही पूछा था न। इसमें आलसी होने की क्या बात है। ख़ैर, उसने फिर से पूछा, ‘यह सब छोड़ों और बताओ कि भीखू हलवाई की दुकान तक कौन-सी सड़क जाती है?’

बच्चू बोला, ‘ऐसा है भैया, ये दोनों ही सड़कें कहीं भी नहीं जातीं। बस यहीं पड़ी रहती हैं। हाँ, अगर कुछ खाना है तो थोड़े हाथ-पैर हिलाओ और खुद चलकर इस दाएँ हाथ वाली सड़क पर चले जाओ। सीधे दुकान पर पहुँच जाओगे। और कहीं सड़क के भरोसे रूक गए तो भैया यहीं खड़े रह जाओगे, क्योंकि ये सड़के तो महा आलसी हैं। बरसों से यही पड़ी हुई हैं।’

यह सुनना था कि यात्री का हँसी के मारे बुरा हाल हो गया। हँसते-हँसते वह दाएँ हाथ वाली सड़क पर चल दिया।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

अन्नदान से असीम पुण्य

अपने हिस्से में से थोड़ा सा भी अन्न यदि किसी भूखे को भोजन कराने में दिया जाए, तो उसका पुण्य हजार सत्कर्मो से बढ़कर होता है।
एक लकड़हारा पूरे दिन लकड़ियाँ काटता किंतु इतने कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था। एक दिन उसकी मुलाकात एक फकीर से हुई। लकडहारे ने उसे अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा- बाबा मैं चाहता हूँ कि जब भी आपकी ईश्वर से मुलाकात हो, मेरी फरियाद उसके सामने रखेँ और मेरे कष्ट का कारण पूछें। कुछ दिन बाद उसे वह फकीर फिर मिला। लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो उसने कहा -ईश्वर ने बताया कि तुम्हारी उम्र 60 साल है और तुम्हारे भाग्य में पूरे जीवन के लिए बस पांच बोरी अनाज है। इसीलिए वह तुम्हे थोड़ा- थोड़ा अनाज देता है।
लकड़हारे ने कहा- बाबा , अब जब भी ईश्वर से आपकी बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुंचाना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूँ। अगले दिन फकीर ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारा के घर ढेर सारा अनाज पहुंच गया। लकड़हारा समझा कि ईश्वर ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया है। उसने कल की चिंता किए बिना पूरे अनाज का भोजन बनवाकर फकीरों और भूखों को खिलाया और खुद भी भरपेट खाया। अगली सुबह उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया। उसने फिर गरीबों को खिला दिया।यह सिलसिला चल पड़ा। कुछ दिन बाद वह फकीर फिर लकड़हारे को मिला, तो लकड़हारे ने कहा -बाबा आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पांच बोरी अनाज है,लेकिन अब तो रोज मेरे घर पांच बोरी अनाज आ जाता है। फकीर ने कहा- तुमने अपने हिस्से का अनाज गरीबों को खिला दिया , इसीलिए ईश्वर अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहा है। कथा अन्न दान की महिमा को इंगित करती है। अपने हिस्से में से थोड़ा सा भी अन्न यदि किसी भूखे को भोजन कराने में दिया जाए, तो उसका पुण्य हजार सत्कर्मो से बढ़कर होता है। सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है-प्रयाप्त हे।