विद्यालय समाज का वह केंद्र बिंदु है जहा भावी पीढ़ी में कौशल विकास सुनिश्चित किया जाता है एवम योजना निर्माण का उदेश्य है कि लक्ष्य निर्धारित समय में प्राप्त किये जा सके। विद्यालय के शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु विद्यालय योजना निर्माण हेतु सर्वप्रथम ” कोठारी आयोग” ने सिफारिश की थी। इसी क्रम में 1968 में शिक्षा विभाग द्वारा विद्यालय योजना की रूप रेखा निर्धारित कर प्रकाशित की गई थी। सन् 1972-73 से प्रत्येक विद्यालय हेतु ” विद्यालय योजना ” निर्माण को अनिवार्य कर दिया गया था।
आरम्भिक समय में ” विद्यालय योजना” हेतु विद्यालय द्वारा अपनाये जाने वाले कार्यक्रमों को अल्पकालिक एवम दीर्घकालिक में बाट कर विद्यालय के लक्ष्यों को ” शेक्षिक”, “सहशैक्षिक” एवम “भौतिक” शीर्षकों में विभक्त किया गया था।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के पश्चात नवीन अपेक्षाओं को सम्मिलित करने हेतु निदेशालय के ” शिक्षक-प्रशिक्षण अनुभाग” व SIERT, उदयपुर के ” शैक्षिक आयोजन एवम प्रशासन विभाग” ने विद्यालय योजना का संशोधित प्रारूप तैयार किया था।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में “सूक्ष्म योजना व विकेन्द्रित योजना” MICRO & DECENTRALIZED PLAN पर बल दिया गया था। इस कारण बेहतर विद्यालय योजनाए बनने लगी एवम प्रत्येक विद्यालय हेतु विद्यालय योजना के निर्माण का महत्व बढ़ गया। विद्यालय स्तर पर ” विद्यालय योजना” एवम जिला स्तर पर “समेकित जिला योजना” का नियमित रूप से निर्माण, अनुपालना, परीक्षण व समीक्षा की जाने लगी।
विद्यालय योजना निर्माण से पूर्व संस्था प्रधान द्वारा की जाने वाली तैयारी-
शिक्षालय केंद्र बिंदु है जहा अधिगम प्रथम लक्ष्य , शिक्षार्थी केंद्र बिंदु , शिक्षक सर्वाधिक उपयोगी संसाधन व वातावरण सर्वोच्च सहायक है। सैद्धांतिक रूप से ” विद्यालय योजना” एक अभिलेख है एवम इसका प्रारूप सर्वत्र समान होता है लेकिन विभिन्नता के कारण प्रत्येक विद्यालय की योजना अलग होती है। एक संस्था प्रधान को विद्यालय योजना के निर्माण से पूर्व विद्यालय, स्थानीय समुदाय, परिस्तिथियों एवम संसाधनों का विहंगम अवलोकन कर निम्नानुसार जानकारी एकत्र कर लेनी चाहिए-
1. क्षेत्रवार समस्याओ की सूचि बनाये यथा- शैक्षिक, सहशैक्षिक, भौतिक, वातावरण, विभागीय कार्यक्रम व अन्य क्षेत्र।
2. क्षेत्रवार समस्या सूचि तैयार होने पर ” उन्नयन बिन्दुओ ” का निर्धारण। (क्षेत्रवार समस्याएं व उन्नयन बिंदु प्रतिवर्ष परिवर्तित हो सकते है।)
3. प्राथमिकता का निर्धारण, संस्था प्रधान संस्था की स्तिथि के अनुसार प्राथमिकता का चयन करने हेतु स्वतंत्र है, लेकिन प्राथमिकता चयन के समय यह ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि हमारा प्राथमिक उद्देश्य परीक्षा परिणाम व शैक्षणिक स्तर में गुणात्मक अभिवर्धि है अतः ऐसी प्रवतियो का चयन प्राथमिकता से करे जिनका इनसे सीधा सम्बन्ध हो तथा जो विद्यार्थी अधिगम को सहज विकास प्रदान करे। इस हेतु तत्कालीन समय में संचालित होने वाले विभागीय कार्यक्रमों व शिक्षा दर्शन को प्रथमिकता प्रदान करे।
4. प्राथमिकता चयन के पश्चात प्रत्येक प्राथमिकता हेतु लक्ष्य निर्धारण किया जाता हैं। लक्ष्य के दो पक्ष होते है- कार्यपूर्ती पक्ष व समय सीमा पक्ष।इन दोनों पक्षों का उचित समावेश आवश्यक हैं। एक संस्था प्रधान को सर्वप्रथम कार्यपूर्ती पक्ष की विभागीय व मानक अपेक्षाएं ज्ञात रहनी चाहिए। मानक अपेक्षाओं को हम आवश्यकता के रूप में भी समझ सकते हैं। इन मानक अपेक्षाओं Pको हमें लिखित रूप प्रदान कर देना चाहिए।
इसके पश्चात हमें मानक अपेक्षाओं की तुलना उपलब्ध संसाधनों से करनी है एवम कमियो या आवश्यकताओं के क्रम में प्राथमिकता चयन व निर्धारण करना हैं। इस निर्धारण कार्य हेतु हमें विभिन्न शीर्षकानुसार सुचियो का निर्माण करना होता हैं। इन सुचियो में आवश्यक व उपलब्ध संसाधनों को दर्शाना हैं।
लक्ष्य निर्धारण वास्तविकता के धरातल पर रहते हुए करना चाहिए अन्यथा नैराश्य भाव प्राप्त हो सकता है। प्रत्येक उन्नयन बिंदु हेतु प्रभारी नियुक्ति भी रूचि, योग्यता व समर्पण आधार पर की जानी चाहिए।
विद्यालय योजना निर्माण करते समय ध्यान में रखे जाने योग्य बिंदु-
1. विद्यालय योजना उपलब्ध क्षमता, संसाधन, व आवश्यकता के आधार पर जरुरी।
2. योजना निर्माण हेतु अध्यापको, अभिभावको, विद्यार्थियों व समुदाय का सहयोग जरुरी।
3. निम्न क्षेत्रो को आवश्यक रूप से शामिल करे- शैक्षिक, सहशैक्षिक, भौतिक, वातावरण निर्माण एवम विभागीय कार्यक्रम।
4. प्रत्येक क्षेत्र के विकास हेतु उन्नयन बिंदु निर्माण के पश्चात उनकी भी उपलब्ध संसाधनों व आवश्यकता के अनुसार प्राथमिकता निधारित कर प्रभारी नियुक्ति, समयावधि तैयार करना व कार्य के चरण बनाना।
5. संस्था प्रधान द्वारा मासिक व त्रिमासिक प्रबोधन करना।
6. अर्द्ध वार्षिक व वार्षिक मूल्यांकन जिला शिक्षा अधिकारी को प्रेषित करना।
7. प्रत्येक उन्नयन बिंदु का प्रगति सुचना ग्राफ बनाना।
A. विद्यालय योजना निर्माणका प्रारूप-
विद्यालय नाम, विद्यालय का संक्षिप्त इतिहास, संस्था प्रधान नाम-योग्यता-अनुभव, छात्र संख्या- कक्षावार व आयु वर्गवार, अनुसूचित जाति वर्ग नामांकन सुचना, विद्यालय परिवार- अध्यापक वर्ग ( पूर्ण व विस्तृत संस्थापन सुचना) व अन्य वर्ग के कार्मिको की पूर्ण सुचना, विषय जो विद्यालय में पढ़ाये जाते है, विद्यालय भवन सम्बन्धी सम्पूर्ण विवरण ( परिसर, स्थान, कक्षाकक्ष, विविध कक्ष, उपस्कर, उपकरण, सुविधाएं इत्यादि), खेल के मैदान, पुस्तकालय, वाचनालय, परीक्षा परिणाम, सत्र में उपलब्ध कार्य दिवस, विद्यालय के आर्थिक संसाधन , सामाजिक परिवेश, वातावरण व अन्य अधिकतम सूचनाये।2. विद्यालय द्वारा चयनित योजना बिंदु- ( बिंदु 8 से 13 तक)
इसमें विद्यालय की विभिन्न आवश्यकताए ( क्षेत्रवार), समुन्नयन कार्य बिंदु( इसमें शैक्षिक, सहशैक्षिक, अध्यापक उन्नयन, भौतिक, विशेष कार्यक्रम, विभागीय कार्यक्रम, राष्ट्रीय कार्यक्रम सम्मिलित करते हुए उन्हें सैद्धान्तिक व टेबल में प्रदर्शित करना), प्रत्येक बिंदु की कार्य योजना निर्माण ( इसमे क्षेत्रवार प्रत्येक समुन्नयन कार्य की योजना- कार्य का नाम-आवश्यकता-महत्व, संयोजक का नाम, वर्तमान स्तिथि का विश्लेषण, कार्य का लक्ष्य, समय सीमा, उपलब्ध साधन सुविधाएं, क्रियान्विति सम्बंधित सोपान, मूल्यांकन विधि व प्रबोधन को सम्मिलित करना है) की जाती है।
इस योजना में सम्मिलित समुन्नयन कार्यक्रम में सम्मिलित समस्त तथ्य स्पष्ठ, आवश्यकता आधारित व संख्यात्मक होने चाहिए। लक्ष्यों का निर्धारण स्पष्ठ व मापन योग्य होना चाहिए। क्रियान्विति के चरणों में क्रमबद्धता, सार्थकता, लचीलापन होना अपेक्षित है। प्रयुक्त किये जाने वाले एवम उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण उल्लेख होना चाहिए। मूल्यांकन का समय, तरीका व सम्भवता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
3. स्व-मूल्यांकन प्रपत्र- ( बिंदु 14 से 18 तक)
संस्था प्रधान को योजना के हर पहलु के मूल्यांकन हेतु प्रपत्र तैयार कर के अपने रिकॉर्ड में रखना चाहिए एवम जब भी योजना का मूल्यांकन किया जाए तो इनके सतत प्रयोग से योजना का सतत व समग्र बिंब प्राप्त करे।
B. विद्यालय योजना का क्रियान्वन-
विद्यालय योजना के निर्माण के समय ही संस्थाप्रधान द्वारा मूल्यांकन प्रपत्रो का निर्माण कर प्रत्येक क्षेत्र के लिए निर्मित समुन्नयन बिन्दुओं के आधार पर सम्बंधित प्रभारी के द्वारा सम्पादित कार्यो का अवलोकन व सम्बलन प्रदान किह जाता है। विद्यालय में निरीक्षण हेतु आने वाले अधिकारी को भी निरीक्षण के समय उनके समक्ष विद्यालय योजना प्रस्तुत कर उनके द्वारा किये गए मूल्यांकन व प्रदत्त सुझावो को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
C. विद्यालय योजना प्रगति प्रतिवेदन-
विद्यालय योजना के निर्माण एवम सतत मूल्याङ्कन के पश्चात विद्यालय योजना का प्रगति प्रतिवेदन उपसत्र, अर्धवार्षिक व वार्षिक आधार पर नियंत्रण अधिकारी को निर्धारित प्रारूप में प्रेषित किया जाता हैं।
विशेष- निदेशालय द्वारा विद्यालय योजना समीक्षा में यह सामने आया है कि अधिकांश जिलो में दीर्घकालीन योजना का निर्माण नहीं किया गया। विद्यालय योजना के प्रति प्राथमिक स्तर पर उत्साह भी कम पाया गया। अधिकतर मामलो में प्रभारी का चयन उनसे सहमति लिए बिना किया गया एवम स्टाफ की सहभागिता भी बहुत कम नज़र आई। परिविक्षण अधिकारियों द्वारा भी वक्त निरीक्षण इसे पूर्ण अधिमान नहीं दिया।
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