श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) : एक महान गणितज्ञ

श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को मद्रास से 400 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित ईरोड नामक एक छोटे से गांव में हुआ था। रामानुजन जब बहुत छोटे रहे होंगे उसी समय उनका परिवार ईरोड से कुम्भकोण में आ गया। वे एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता कुम्भकोणम में एक कपड़ा व्यापारी के यहां मुनीम का काम करते थे। जब वे पांच वर्ष के थे तो उनका दाखिला कुम्भकोणम के प्राइमरी स्कूल में करा दिया गया। सन् 1898 में इन्होंने टाउन हाईस्कूल में प्रवेश लिया और सभी विषयों में बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए। यहीं पर रामानुजन को जी. एस. कार की गणित पर लिखी किताब पढ़ने का मौका मिला। इस पुस्तक से प्रभावित होकर उन्होंने स्वयं ही गणित पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया।

श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) धार्मिक प्रवृत्ति और शांत स्वभाव के एक चिन्तनशील बालक थे। अपने खपरैल की छत वाले पैत्रिक मकान के सामने एक ऊंचे चबूतरे पर बैठकर वे गणित के सवाल हल करते रहते थे। रामानुजन का गणित के प्रति जबर्दस्त लगाव था। विशुद्ध गणित के अतिरिक्त अन्य विधाओं मसलन गणितीय भौतिकी और अनुप्रयुक्त गणित में उनकी रुचि नहीं थी। रामानुजन गणित की खोज को ईश्वर की खोज की तरह मानते थे। इसी कारण गणित के प्रति उनमें गहरा लगाव था। उनका मानना था कि गणित से ही ईश्वर का सही स्वरूप स्पष्ट हो सकता है। वे संख्या ‘एक’ को अनन्त ईश्वर का स्वरूप मानते थे। वे रातदिन संख्याओं के गुणधर्मों के बारे में सोचते, मनन करते रहते थे और सुबह उठकर कागज पर अकसर सूत्र लिख लिया करते थे। उनकी स्मृति और गणना शक्ति अद्भुत थी। वे , 2, 8 आदि संख्याओं के मान दशमलव के हजारवें स्थान तक निकाल लेने में सक्षम थे। यह उनकी गणितीय मेधा का प्रमाण है।

श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) जब दसवीं कक्षा के छात्र थे तो उन्होंने स्थानीय कॉलेज के पुस्तकालय से उच्च गणित में जार्ज शुब्रिज कार का एक ग्रन्थ “सिनॉप्सिस आफ प्यार मैथेमैटिक्स” प्राप्त किया। इस ग्रन्थ में बीजगणित, ज्यामिति, त्रिकोणमिति और कलन गणित के 6165 सूत्र दिये गये हैं। इनमें से कुछ सूत्रों की बहुत संक्षिप्त उपपत्तियां भी दी गई हैं। यह ग्रन्थ रामानुजन के लिए उच्च गणित का बहुत बड़ा खजाना था। वे गम्भीरता से इस ग्रन्थ के प्रत्येक सूत्रों को हल करने में जुट गये और इन सूत्रों को सिद्ध करना उनके लिए गवेषणा का कार्य बन गया। उन्होंने पहले मैजिक स्क्वायर तैयार करने की कुछ विधियाँ खोज निकाली। रामानुजन ने समाकलन का अच्छा ज्ञानार्जन कर लिया। बीजगणित की कई नई श्रेणियां उन्होंने खोज निकालीं। उनके गुरु डॉ. हार्डी का कथन काबिलेगौर है-“इसमें संदेह नहीं है कि इस ग्रन्थ ने रामानुजन को बेहद प्रभावित किया और उनकी संपूर्ण क्षमता को जगाया। यह ग्रन्थ उत्कृष्ट कृति नहीं है परन्तु रामानुजन ने इसे सुप्रसिद्ध कर दिया। इसके अध्ययन के बाद ही एक गणितज्ञ के रूप हुआ। में रामानुजन के जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ।

कुम्भकोणम के शासकीय महाविद्यालय में अध्ययन के लिए रामानुजन को छात्रवृत्ति मिलती थी। परंतु रामानुजन द्वारा गणित के अलावा दूसरे विषयों की अनदेखी करने पर उनकी छात्रवृत्ति बंद हो गई। सन् 1905 में रामानुजन मद्रास विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में सम्मिलित हुए परंतु गणित को छोड़कर बाकी सभी विषयों में वे अनुत्तीर्ण हो गए । सन् 1906 एवं 1907 की प्रवेश परीक्षा का भी यही परिणाम रहा। आगे के वर्षों में कार की पुस्तक को मार्गदर्शक मानते हुए रामानुजन गणित में कार्य करते रहे और अपने परिणामों को लिखते गए जो “नोटबुक'” नाम से सुप्रसिद्ध हुए। रामानुजन को प्रश्न पूछना बहुत पसंद था। उनके प्रश्न अध्यापकों को कभी-कभी अटपटे लगते थे। मसलन कि संसार में पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादलों के बीच की दूरी कितनी होती है? वगैरह।

श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) का व्यवहार बड़ा ही मधुर था सामान्य से कुछ ज्यादा ही कृशकाय, और जिज्ञासा से चमकती आखें इन्हें एक अलग पहचान देती थीं। इनके सहपाठियों के अनुसार इनका व्यवहार इतना सौम्य था कि कोई इनसे नाराज हो ही नहीं सकता था। विद्यालय में इनकी प्रतिभा ने दूसरे विद्यार्थियों और शिक्षकों पर छाप छोड़ना आरंभ कर दिया। इन्होंने स्कूल के समय में ही कालेज स्तर के गणित का अध्ययन कर लिया था एक बार इनके विद्यालय के हेडमास्टर ने कहा भी कि विद्यालय में होने वाली परीक्षाओं के मापदंड रामानुजन के लिए लागू नहीं होते। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्हें गणित और अंग्रेजी में अच्छे अंक लाने के कारण “सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति” मिली और आगे कालेज की शिक्षा के लिए प्रवेश भी मिला।

वर्ष 1909 में श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) दांपत्य जीवन में बंध गए। फिर उन्हें रोजी रोटी की फिक्र होने लगी। फलतः उन्होंने नौकरी ढूँढ़नी शुरू की। नौकरी की खोज के दौरान रामानुजन कई प्रभावशाली व्यक्तियों के सम्पर्क में आए। “इंडियन मैथमैटिकल सोसायटी” के संस्थापकों में से एक रामचंद्र राव भी उन्हीं प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे। रामानुजन ने रामचंद्र राव के साथ एक साल तक कार्य किया। इसके लिए उन्हें 25 रुपये महीना मिलता था। इन्होंने “इंडियन मैथमैटिकल सोसायटी” के जर्नल के लिए प्रश्न एवं उनके हल तैयार करने का कार्य प्रारंभ कर दिया। सन् 1911 में बनोली संख्याओं पर प्रस्तुत शोधपत्र से इन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली और मद्रास में गणित के विद्वान के रूप में पहचाने जाने लगे सन् 1912 में रामचंद्र राव की सहायता से मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के लेखा विभाग में लिपिक की नौकरी करने लगे। रामानुजन ने गणित में शोध करना जारी रखा और 8 फरवरी सन् 1913 में इन्होंने जी. एच. हार्डी को पत्र लिखा।

साथ में स्वयं के द्वारा खोजे प्रमेयों की एक लम्बी सूची भी भेजी। ये पत्र हार्डी को सुबह नाश्ते के वक्त मेज पर मिले। इस पत्र में एक अनजान भारतीय द्वारा बहुत सारे बिना उपपत्ति के प्रमेय लिखे थे जिनमें से कई प्रमेय हार्डी देख चुके थे पहली नजर में हार्डी को ये सब बकवास लगा। उन्होंने इस पत्र को किनारे रख दिया और अपने काम में लग गए। परंतु इस पत्र की वजह से उनका मन अशांत था। इस पत्र में बहुत सारे ऐसे प्रमेय थे जो उन्होंने न कभी देखे थे , और न सोचे थे। उन्हें बार-बार यह लग रहा था कि यह व्यक्ति (रामानुजन) या तो धोखेबाज है या फिर गणित का बहुत बड़ा विद्वान। रात को 9 बजे हार्डी ने अपने एक शिष्य लिटिलवुड के साथ एक बार फिर इन प्रमेयों को देखना शुरू किया तथा देर रात तक वे लोग समझ गये कि रामानुजन कोई धोखेबाज नही बल्कि गणित के बहुत बड़े विद्वान हैं जिनकी प्रतिभा को दुनिया के सामने लाना आवश्यक है। इसके बाद हार्डी ने उन्हें कैम्ब्रिज बुलाने का फैसला किया। हार्डी का यह निर्णय एक ऐसा निर्णय था जिससे न केवल उनकी, बल्कि गणित की ही दिशा बदल गई।

सन् 1914 में हार्डी ने श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) के लिए कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज आने की व्यवस्था की। रामानुजन को गणित की कुछ शाखाओं का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था, पर कुछ क्षेत्रों में उनका कोई सानी नहीं था। इसलिए हार्डी ने रामानुजन को पढ़ाने का जिम्मा स्वयं लिया। सन् 1916 में रामानुजन ने कैम्ब्रिज से बी एस सी. की उपाधि प्राप्त की। सन् 1917 से ही रामानुजन बीमार रहने लगे थे और अधिकांश समय बिस्तर पर ही रहते थे। बीमारी की एक वजह थी। रामानुजन ब्राह्मण कुल में पैदा हुए थे तथा खानपान के मामले में बहुत परहेज रखते थे। वे पूर्णत: शाकाहारी थे और इंग्लैण्ड में रहते हुए अपना भोजन स्वयं पकाते थे इंग्लैण्ड की कड़ाके की सर्दी और उस पर कठिन परिश्रम। इसी से उनकी सेहत गिरती गयी। उनमें जब तपेदिक के लक्षण दिखाई देने लगे तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कर दिया गया| इधर उनके लेख उच्चकोटि की पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे थे।

सन् 1918 में एक ही वर्ष में रामानुजन को कैम्ब्रिज फिलोसॉफिकल सोसायटी, रॉयल सोसायटी तथा ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज, तीनों का फैलों चुना गया। उस समय उनकी उम्र महज 30 साल थीं। इससे रामानुजन का उत्साह और भी अधिक बढ़ा और वह काम में जी-जान से जुट गए। लेकिन सन् 1919 में स्वास्थ्य ज्यादा खराब होने की वजह से उन्हें भारत वापस में लौटना पड़ा।

एक बार की बात है। श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) अस्पताल में भर्ती  थे। डॉ. हार्डी उन्हें देखने टैक्सी से अस्पताल आए। टैक्सी का नंबर 1729 था। रामानुजन से मिलने पर डॉ. हार्डी ने ऐसे ही सहज भाव से कह दिया कि यह एक अशुभ संख्या है। बात यह थी कि 1729 = 7 x 13 x 19। यहाँ आप देखेंगे कि 1729 का एक गुणनखंड 13 है। यूरोप के अंधविश्वासी लोग इस 13 संख्या से बहुत भय खाते हैं। वे संख्या 13 को बहुत अशुभ मानते हैं। वे 13 संख्यावाली कुर्सी पर बैठने से बचेंगे, 13 संख्यावाले कमरे में ठहरने से बचेंगे। इसलिए डॉ. हार्डी ने रामानुजन से कहा था कि 1729 एक अशुभ संख्या है। लेकिन रामानुजन ने झट जवाब दिया- नहीं, यह एक अद्भुत संख्या है। वास्तव में यह वह सबसे छोटी संख्या है जिसे हम दो घन संख्याओं के जोड़ द्वारा दो तरीकों से व्यक्त कर सकते है। जैसे- 1729 = 12 + 1 तथा 1729 = 10 + 9?

इलिनॉय विश्वविद्यालय के गणित के प्रोफेसर ब्रुस सी. बर्नाट ने श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) की तीन पुस्तकों पर वर्षों तक शोध किया और उनके निष्कर्ष पाँच पुस्तकों के संकलन के रूप में प्रकाशित हुए हैं । प्रो बर्नाड्ट कहते हैं, “मुझे यह सही नहीं लगता जब लोग रामानुजन की गणितीय प्रतिभा को किसी दैवीय या आध्यात्मिक शक्ति से जोड़ कर देखते हैं । यह मान्यता ठीक नहीं है। उन्होंने बड़ी सावधानी से अपने शोध निष्कर्षों को अपनी पुस्तिकाओं में दर्ज किया है।” सन् 1903 से 1914 के दरम्यान कैम्ब्रिज जाने से पहले रामानुजन अपनी पुस्तिकाओं में 3,542 प्रमेय लिख चुके थे। उन्होंने ज्यादातर अपने निष्कर्ष ही दिए थे, उनकी उपपत्ति नहीं दी। शायद इसलिए कि वे कागज खरीदने सक्षम नहीं थे और अपना कार्य पहले स्लेट पर करते थे। बाद में बिना उपपत्ति दिए उसे पुस्तिका में लिख लेते थे।

किसी संख्या के विभाजनों की संख्या ज्ञात करने के फार्मूले की खांज श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) के प्रमुख गणितीय कार्यों में एक है। उदाहरण के लिए संख्या 5 के कुल विभाजनों की संख्या 7 है। इस प्रकारः 5, 4+1, 3+2, 3+1+1 , 2+2+1, 2+11111, 1+1+1+1+1| रामानुजन के फार्मूले से किसी भी संख्या के विभाजनों की संख्या ज्ञात की जा सकती है। उदाहरण के लिए संख्या 200 के कुल 3972999029388 विभाजन होते हैं। हाल ही में भौतिक जगत की नयी थ्योरी “सुपरस्ट्रिंग थ्योरी” में इस फार्मूले का काफी उपयोग हुआ है। रामानुजन ने उच्च गणित के क्षेत्रों जैसे संख्या सिद्धान्त, इलिप्टिक फलन, हाईपरज्योंमैट्रिक श्रेणी इत्यादि में अनेक महत्वपूर्ण खोज की। रामानुजन ने वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात ‘पाई’ के अधिक से अधिक शुद्ध मान प्राप्त करने के अनेक सूत्र प्रस्तुत किए हैं। ये सूत्र अब कम्प्यूटर द्वारा ए के दशमलव के लाखों स्थानों तक परिशुद्ध मान ज्ञात करने के लिए कारगर सिद्ध हो रहे हैं। आज दुनिया के सुपरकम्प्यूटरों की मता प्रायः इस परीक्षण से आंकी जाती है कि वे 7 का मान दशमलव के कितने स्थानों तक कितने अल्पकाल में प्रस्तुत कर सकते हैं।

सन् 1919 में इंग्लैण्ड से वापस आने के पश्चात् रामानुजन कुम्भकोणम में रहने लगे। उनका अंतिम समय चारपाई पर ही बीता। वे चारपाई पर पेट के बल लेटे-लेटे कागज पर बहुत तेज गति से यूँ लिखते रहते थे मानों उनके मस्तिष्क में गणितीय विचारों की आँधी चल रही हो। रामानुजन स्वयं कहते थे कि उनके द्वारा लिखे सभी प्रमेय उनकी कुलदेवी नामगिरि की प्रेरणा हैं। उनका स्वास्थ्य उत्तरोत्तर गिरता गया जो चिंता का विषय था। यहां तक कि डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था। आखिरकार एक दिन रामानुजन के जीवन की सांध्यवेला आ ही गई। 26 अप्रैल 1920 की सुबह वे अचेत हो गए, और दोपहर होते-होते उनका देहावसान हो गया। इतनी अल्पायु में उनके असामयिक निधन से गणित जगत की अपूरणीय क्षति हुई।

उनके देहावसान के बाद मॉक थीटा फंक्शन से सम्बन्धित उनकी “नोटबुक” मद्रास विश्वविद्यालय में जमा थी, प्रो. हार्डी के जरिए डॉ. वाटसन के पास पहुँची। तदोपरान्त श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) की यह 130 पृष्ठों की नोटबुक ट्रिनिटी कालेज के ग्रन्थालय को सौंपी गई। इस “नोटबुक” में रामानुजन ने जल्दी-जल्दी में लगभग 600 परिणाम प्रस्तुत किए थे लंकिन उनकी उपपत्तियां नहीं दी थीं। विस्कोन्सिन विश्वविद्यालय के गणितज्ञ डॉ. रिचर्ड आस्की लिखते है- “मृत्युशैया पर लेटे-लेटे साल भर में किया गया रामानुजन का यह कार्य बड़े-बड़े गणितज्ञों के जीवनभर के कार्य के बराबर है। सहसा यकीन नहीं होता कि उन्होंने अपनी उस दशा में यह कार्य किया। कदाचित किसी उपन्यास में ऐसा विवरण दिया जाता तो उस पर कोई भी यकीन न करता।” रामानुजन की मृत्यु के 37 वर्ष बाद 1957 में टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (TIFR) मुंबई ने तीनों नोटबुकों की फोटो कॉपी का पहला संस्करण दो बड़ी जल्दिों में प्रकाशित किया । रामानुजन की नोट बुकों के प्रकाशन के बाद देश विदेश के गणितज्ञों ने उसमें निहित 4000 सूत्रों तथा प्रमेयों पर खोजबीन शुरू की। उनकी नोटबुकों की यह अमूल्य विरासत गणितज्ञों के लिए शोध तथा रुचि का विषय है । रामानुजन विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। संख्या-सिद्धान्त पर उनके आश्चर्यजनक कार्य के लिए अकसर उन्हें “संख्याओं का जादूगर” कहा जाता है । उन्होंने महज 32 वर्ष 4 माह की कुल उम्र पायी लेकिन इतनी ही अवधि में किया गया उनका कार्य विस्मयकारी है । उनके इस महान गणितीय योगदान के लिए रामानुजन को अकसर “गणितज्ञों का गणितज्ञ” भी कहा जाता हैं ।

किसी भी विषय में ख्याति पाने के साथ असाधारण प्रतिभा से विभूषित व्यक्ति बहुत ही कम होते हैं। समय के साथ ओझल होना भी नियम ही है। परन्तु विश्व गणित मण्डल के उज्जवल नक्षत्र अप्रतिम ख्याति के धनी श्रीनिवास रामानुजन इस नियम के अपवाद हैं। केवल 33 वर्ष की अल्प आयु पाने वाले एवं दरिद्रता के स्तर पर विवशताओं के मध्य पराधीन भारत में पले-बढ़े रामानुजन ने गणित पर अपनी शोधों तथा उनके पीछे छिपी अपनी विलक्षणता की जो छाप छोढ़ी है उसको जानकर किसी को भी आश्चर्य होना स्वाभाविक है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उन जैसे व्यक्ति संसार में कभी-कभी ही जन्म लेते हैं।

उनके जीवन में झाँकना तथा उनके कार्य से अवगत होना एक दिव्य विभूति के निकट जाने जैसा है। यदि आज कृष्ण गीता के दसवें अध्याय के ‘विभूति-योग’ में अर्जुन को अपने विषय में बोध कराते तो यह अवश्य कहते “गणितज्ञानां अहं रामानुजन अस्मि- अर्थात् गणितज्ञों में मैं रामानुजन हूँ।

रामानुजन की मन्दिर एवं पूजा आदि में प्रगाढ़ अभिरुचि थी। नामगिरी देवी के प्रति उनके परिवार एवं उनके विशेष अनुराग के उल्लेख के बिना उनको समझना सम्भव नहीं है। वह अन्त तक नामगिरी देवी को ही अपने शोध कार्य एवं सूत्रों की प्रदायिनी बताते रहे। इसलिए उनके जीवन में अध्यात्म एक विशेष स्थान रखता है। उन्होंने, परिवार के परिवेश में, रामायण महाभारत की कहानियाँ बड़े मनोयोग से सुनी पढ़ी थीं और कदाचित  उपनिषदों में उठाए कठिन प्रश्नों के उत्तर एवं उनके पौराणिक समाधानों को आत्मसात किया था

अंग्रेजी में उनकी जीवनी लिखने वाले रॉबट कैनिगेल का कहना है कि रामानुजन का आध्यात्मिक पक्ष बड़ा प्रबल था। अपने कॉलेज जीवन के दौरान उन्होंने एक बीमार बच्चे के माता-पिता को बच्चे के स्थान परिवर्तन की सलाह इसलिए दी थी कि उनका मानना था कि मृत्यु पूर्व निश्चित स्थान एवं समय के संयोग के बिना नहीं होती। और स्थान परिवर्तन से उसे स्वास्थ्य लाभ हो सकता था। इसके अतिरिक्त एक बार स्वप्न में उन्होंने एक हाथ को लहू से सने लाल पट पर इलिप्टिक को बनाते हुए देखा था गणित के इल्पिटिक-फंक्शनों पर उनका काफी कार्य है।

अंकों में वह रहस्य एवं अध्यात्म देखते थे। वह सत्ता को शून्य और अनन्त के रूप में कल्पित करते थे। उनके विचार से शून्य पूर्ण सत्य का निर्विकार प्रतिरूप है और अनन्त उस पूर्ण सत्य से प्रक्षेपित विचित्र सृष्टि। गणित का थोड़ा-सा ज्ञान रखने वाले व्यक्ति भी यह जानते हैं कि कुछ संख्याओं को गणित में अनिश्चित (Indeterminate) माना जाता है, और उनका मान विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग होता है। ऐसी एक स्थिति 0 x ०० अर्थात् शून्य एवं अनन्त के गुणा की भी है। यह गणित में अनिश्चित है, इसका फल कोई भी संख्या हो सकती है। रामानुजन इसे ब्रह्म एवं सृष्टि से जोड़ते थे। अर्थात् ब्रह्म एवं सृष्टि के गुणन से कोई भी फल (अंक अथवा संख्या) प्राप्त हो सकता है।

अंकों के रहस्य को वह काफी आगे तक सोचते थे। अपने एक मित्र को उन्होंने संख्या 2″ -1 बारे में बड़ी रोचक बातें बतलाई थीं। उनके अनुसार यह संख्या आदि ब्रह्म, विभिन्न दैवी एवं अन्य आध्यात्मिक शक्तियों का निरूपण करती है। जब n=0 है तब यह संख्या शून्य है, जिसका अर्थ है अनित्यता, जब n=1 तब इसका मान । है, अथवा आदि ब्रह्म, और जब n = 2 है, तब इसका मान 3 त्रिदेवों को प्रस्तुत करता है, तथा n = 3 लेने पर इसका मान 7, सप्त ऋषियों को। 7 की संख्या को वह अंकों के रहस्यवाद की दृष्टि से काफी महत्त्व की मानते थे।

भारत में लगभग सभी व्यक्ति प्रोफेसर पी.सी. महालनबीस के नाम से परिचित होंगे। उन्होंने कलकत्ता में ‘इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीट्यूट’ की स्थापना की थी तथा भारत के स्वतंत्र होने पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें सर्व प्रथम योजना-आयोग का कार्य सौंपा था। रामानुजन के समय में प्रशान्त चन्द्र महालनबीस इंग्लैण्ड में किंग्स कॉलेज में विद्यार्थी थे। बाद में वह रायल सोसाइटी के फेलो मनोनीत हुए थे। इंग्लैंड में कैम्ब्रिज वास के समय रामानुजन की भेंट श्री महालनबीस से हुई और वह दोनों भारतीय बहुधा मिलकर बातें किया करते थे महालनबिस का कहना था कि रामानुजन दार्शनिक प्रश्नों पर इतने उत्साह से बोलते थे, कि मुझे लगता कि उन्हें गणित के सूत्रों को जी-जान से सिद्ध करने में लगने के स्थान पर अपने दार्शनिक सूत्रों के प्रतिपादन में लगना चाहिए था।

रामानुजन का अपने एक मित्र से यह कथन कि ‘यदि कोई गणितीय समीकरण अथवा सूत्र किसी भगवत् विचार से उन्हें नहीं भर देता तो वह उनके लिए निरर्थक है’ उनके उत्कृष्ट आध्यात्म का परिचायक है। उनका जीवन भारतीय आध्यात्मिक परम्परा के अनुरूप पूर्ण समर्पण का था-गणि रात में ब्रह्म का, आत्मा का एवं सृष्टि के साक्षात करने का।

सत्य तर्क का विषय नहीं होता, परन्तु तर्क के विपरीत भी नहीं होता। जो सत्यदृष्टा रहस्य और तर्क में सामंजस्य स्थापित करने में सफल हो जाता है, भारतीय परम्परा में वह ऋषि है । एक ऋषि की भाँति वह अपने सूत्रों के दृष्टा थे, जिनको उन्होंने अपनी तार्किक बुद्धि से प्रतिपादित अथवा सिद्ध किया।

शोध को वैज्ञानिक दो भाग में बाँटते आए हैं-खोज (डिस्कवरी) अथवा अविष्कार (इन्वेंशन)। खोज में गुप्त को प्रकट करने की प्रक्रिया होती है और अविष्कार में नए सृजन की। एक रहस्योद्घाटन की प्रक्रिया है और दूसरा वैचारिक-विश्लेषण का परिणाम। रामानुजन को बहुत निकट से जानने वाले, प्रो. हार्डी ने उनके कार्य को सृजन प्रक्रिया की देन मान कर सराहा है । कैनिगेल ने उनकी जीवनी पर लेखनी उठाने से पूर्व उनके व्यक्तित्व एवं मानसिक-सामाजिक परिवेश का गहन अध्ययन किया है । बह उनके दिए सूत्रों को खोज की श्रेणी में रखकर उनके आध्यात्मिक पक्ष को प्रबल मानते हैं। क्लिष्ट सूत्रों का त्रुटि-हीन प्रतिपादन हार्डी के विश्वास का आधार है तो ऐसे बहुत से क्लिष्ट सूत्र जिनका प्रतिपादन वह अपने जीवन में नहीं दे पाए और उनमें से कुछ पर बाद में कार्य चला और चल रहा है, कैनीगेल की धारणा को दृढ़ करते हैं। वास्तविकता यह है कि उनमें दोनों ही पक्ष-आध्यात्मिक रहस्यवाद एवं विश्लेषणत्मक बुद्धि का अनोखा संगम था। प्रोफेसर हार्डी के अनुसार रामानुजन सरल प्रकृति के हँसमुख व्यक्ति थे वह कहानियाँ तथा चुटकुले सुनाने में रुचि लेते थे गणित के साथ अपने इंग्लैंड वास के समय वह राजनैतिक विषयों पर भी रुचि से चर्चा करते थे।